Dhvanyaloka (श्रीमदानन्दवर्धनाचार्यप्रणीत ध्वन्यालोकः)
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Author | Aachary Lokmani Dahalah |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 4th edition, 2014 |
ISBN | 978-81-217-0329-1 |
Pages | 695 |
Cover | Paper Back |
Size | 13 x 2.5 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0069 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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ध्वन्यालोकः (Dhvanyaloka) वैसे तो नाम के अनुसार तो ध्वन्यालोक का वर्ण्य विषय ध्वनि ही होता है। ‘ध्वनेः आलोकः ध्वन्यालोकः’ अथवा ‘ध्वनिः आलोक्यते यस्मिन्निति ध्वन्यालोकः। “दोनों पक्षों में दर्शनार्थक लोक’ धातु से अधिकरण अर्थ में घञ् प्रत्यय हुआ है। प्रथम पक्ष में ‘ध्वन्यालोकः अस्ति अस्मिन्निति’ अर्श आदि अच्’ करना पडेगा। विस्तृत रूप में तो ध् वनि ध्वन्यालोक का वर्ण्य विषय ध्वनि के साथ-साथ इससे सम्बन्धित अन्य पक्ष भी आ जाते हैं। इस तरह ध्वन्यालोक का वर्ण्यविषय निम्नलिखित है-
(१) विभिन्न मतोल्लेख का खण्डन करके ध्वनि की प्रस्थापना। (२) वाच्य एवं प्रतीयमान अर्थ।
(३) ध्वनि के व्यञ्जकों का विवरण। (४) व्यञ्जक के लिए व्यञ्जनावृत्ति को अपनाना।
(५) गुणीभूत व्यङ्य ध्वनि (६) सहृदय श्लाघ्य वाच्य अर्थ और (७) रस ध्वनि का महत्त्व एवं रसों का तालमेल।
इन विषयों में ऊपर नीचे करके सविषयक वर्णन ध्वन्यालोक में किया गया है। प्रतीयमान अर्थ, व्यञ्जनावृत्ति की अपना, गुणीभूतव्यङ्ग्य – यो तीन विषय ध्वन्यालोक की एकदम नयी देन हैं। इसीलिए ही आनन्दवर्धन को ध्वनि प्रस्थापन परमाचार्य भी कहा गया है।
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