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Godan Paddhati (गोदानपद्धतिः)

10.00

Author Brahmanand Tripathi
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2015
ISBN -
Pages 18
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0297
Other Old and Rare Book

 

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Description

गोदानपद्धतिः (Godan Paddhati) धर्मशास्त्रों में ऐहिक एवं आमुष्मिक सुख प्राप्ति के लिये दान, यज्ञ आदि अनेक शुभकृत्यों का विधान मानव के कल्याण के लिये किया है। यहाँ हमने १. बृहद्‌गोदान, २. पापधेनुदान, ३. ऋणधेनुदान, ४. मोक्षधेनुदान, ५. प्राय- चित्तधेनुदान ६. वैतरणीधेनुदान तया ७. उत्कीर्णधेनुदान का लोकोपकारार्थ इसमें संग्रह किया है।

महान् योगी भर्तृहरि ने धन की तीन गतियाँ कही हैं – दान, भोग तथा नाश । जो पुरुष दान तथा भोग में उस धन का उपयोग नहीं करता, उसके धन की तीसरी गति ( नाश) हो जाती है। मधुमक्खियाँ अपने द्वारा संचित मधु का दान, भोग नहीं करतीं अतः चतुर मनुष्य उसके द्वारा संचित मधु को निकाल कर ले जाते हैं और वे बेचारी दान, भोग के अभाव में अपने दोनों हाथों को मलती रह जाती हैं। इस दृश्य पर नीतिकुशल चाणक्य की दृष्टि पड़ी थी, उन्होंने इनकी कृपणता का उपहास किया है। धर्मशास्त्र में दान को पापनाशक कहा है। यथा ‘दानं दुरितनाशनम्’।

युगभेद से धर्म के अनेक स्वरूपों का वर्णन देवताओं के गुरु बृहस्पति ने इस प्रकार किया है– सतयुग में तप, त्रेतायुग में ज्ञानप्राप्ति, द्वापर युग में यज्ञकर्म और कलियुग में दान, दया तथा दम (संयम) ये ही वास्तविक धर्म हैं। देखें

तपोधर्मः कृतयुगे ज्ञानं त्रेतायुगे स्मृतम् । द्वापरे चाध्वराः प्रोक्ताः कलौ दानं दया दमः ॥

धर्मशास्त्रों में महादानों के अन्तर्गत गोदान, भूमिदान तथा विद्यावान का समावेश किया गया है। यहाँ हमने दानप्रकरणों में णित सभी गोदानों का विधिपूर्वक विधान दे दिया है। इनमें वृहद्‌गोदान सभी प्रकार की इच्छापूति के लिये किया जासकता है। शेष पाँच गोदान कारण विशेष से किये जाते हैं। सभी प्रकार के दानों के साथ दक्षिणा देना आवश्यक होता है, जैसा कि भविष्यपुराण में कहा गया है-

अवत्तदक्षिणं दानं व्रतं चैव नृपोत्तम । विफलं तद्विजानीयाद् अस्मनीव हुतं हविः ।।

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