Hans Sandesh (हंससंदेशः)
₹85.00
Author | Shri Lakshami Prapanna Sharma |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | - |
ISBN | 81-218-0153-2 |
Pages | 230 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0626 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
9 in stock (can be backordered)
CompareDescription
हंससंदेशः (Hans Sandesh) संस्कृत साहित्य में नाटक के नायकों में धीरोदात्त नायक का एक गुण यह बतलाया गया है कि उसे अविकत्वन होना चाहिए। आत्मप्रशंसा न करनेवाला विश्व बन्य है। यह गुण अत्यधिक मात्रा में संस्कृत के प्राचीन महाकवियों और दार्शनिकों में भी पाग जाता है। दास्यभाव के उपासकों को तो बात ही निराली है। वे तो परमात्मा की दृष्टि में अपने को सबसे तुच्छ जीव समझते हैं। उनकी यह निरभिमानपूर्ण लघुता किंवा विनम्रता ही उन्हें जगत् के सर्वश्रेष्ठ महापुरुषों की पंक्ति में प्रतिष्ठित कर देती है। कालिदास आादि महाकवियों ने विश्व के अन्तर्बाह्य समस्त विषयों का सरल, सुरुचिपूर्ण एवं सरस निरूपण तो किया; किन्तु स्वयं अपने विषय में वे मौनावलम्बी ही बने रहे, जिसका परिणाम आज भी विद्वत्समाज को भोगना पड़ रहा है। सैकड़ों अनुसन्धानग्रन्थ इन कबियों पर लिखे जा रहे हैं; परन्तु अभी भी अविकत्थन महाकवियों के जन्म, स्थान, काल एवं कृतियों का साङ्गोपाङ्ग ठीक-ठीक परिचय नहीं मिल पा रहा है। इनकी कुछ प्राप्त कृतियों के अन्तः और बहिः साक्ष्य के आधार पर अपनी-अपनी कल्पना के सहारे कुछ न कुछ निर्णय पर सन्तोष कर लेना पड़ता है।
अन्य विषयों की भाँति यदि अपने विषय में भी ये कवि कुछ लिख जाते तो आज के जिज्ञासुओं को इतने अन्धकार में टटोलना न पड़ता। प्रस्तुत गीति ग्रन्थ ‘हंससन्देश’ के रचयिता प्रातःस्मरणीय कवितार्किक केशरी वेदान्ताचार्य जी ने इस विषय में पाठकों के श्रम का परिहार कर दिया है। सौभाग्य की बात है कि स्वयं इनके ग्रन्थों के उद्धरणों से तो इनके जीवनवृत्त पर प्रकाश पड़ता हो है, उनके सुपुत्र एब सुशिष्यों तथा श्रीवैष्णव गुरुपरम्परा के नदीष्ण विद्वानों के सतत् चिन्तन, मनन एवं धमपूर्ण अनुसन्धा- नकार्यों से और भी यह विषय प्रशस्त होता जा रहा है। श्री वेदान्तदेशिक अपने समय के विख्यात कविताकिक एवं भगवान् विष्णु के बनन्य उपासक थे। श्रीवैष्णव गुरुपरम्परा के अनुसार ये श्री रामानुजाचावं के विशिष्टाईत सिद्धान्त के सबसे बड़े विख्यात प्रचारक थे। बढ़गण बौर तिङ्गल दोनों श्रीवैष्णव इनके ग्रन्थों को बादरपूर्वक गढ़ते हैं और उनके प्रति जवाब श्रद्धा-भक्ति अभिव्यक्त करते हैं।
Reviews
There are no reviews yet.