Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Harit Samhita (हारीत संहिता)

310.00

Author Vaidya Jaymini Panday
Publisher Chaukhambha Viswabharati
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2022
ISBN 978-93-81301-77-7
Pages 544
Cover Paper Back
Size 18 x 2 x 17 (l x w x h)
Weight
Item Code CVB0026
Other Dispatched in 1-3 days

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

हारीत संहिता (Harit Samhita) इतिहासविदों के अनुसार भारतवर्ष में विश्व के सभी देशों से प्रथम चिकित्सा शास्त्र का ज्ञान समुत्रत एवं परिवर्धित था। प्राचीनतम साहित्यों (वेदों) में भी चिकित्सीय विषय समुपलब्ध हैं। आयुर्वेद शास्त्र अथर्ववेद का उपवेद है। इस शास्त्र का ज्ञान ब्रह्मा के स्मरणोपरान्त परम्परानुसार इन्द्र को हुआ। चतुर्वग फल प्राप्ति की भावना को दृष्टिगत कर दीर्घायु के लिये रोगों से रक्षणार्थ ऋषियों द्वारा निर्णयानुसार भारद्वाज ने इन्द्र से इस ज्ञान को प्राप्त कर पृथ्वी पर ऋषियों की गोष्ठी में व्यक्त किया। उन्हीं ऋषियों में से आत्रेय पुनर्वसु ने अपने छः शिष्यों को आयुर्वेद का ज्ञान कराया। जिनमें हारीत की भी गणना है। पुनर्वसु के सभी शिष्यों ने अपने-अपने नाम से तन्त्रों की रचना की। उन्हीं में हारीत के नाम से लिखित ‘हारीत संहिता’ उपलब्ध है, जो आचार्य पुनर्वसु से अनुमोदित है। इस पुस्तक के माध्यम से आचार्य पुनर्वसु ने अपने सभी शिष्यों द्वारा रचित पुस्तकों की शंकाओं का समाधान पूर्णरूपेण किया है तदुपरान्त उनका अनुमोदन भी किया है। यह पुस्तक चिकित्सा के क्षेत्र में बौद्धिक योगदान के लिये अत्यावश्यक सिद्ध हुयी है।

आचार्य पुनर्वसु के शिष्य हारीत स्वकीय ग्रन्थ ‘हारीत संहिता’ में चिकित्सा की सभी विधाओं का वर्णन किया है। इस पुस्तक में आयुर्वेदीय वनस्पतियों द्वारा चिकित्सा की सम्यक् व्यवस्था वर्णित है। वह स्वयं में अति उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ में देश, काल, वय का भी वर्णन है। यह ग्रन्थ चिकित्सकीय जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण एवं एकल औषधि चिकित्सा के क्षेत्र में समृद्ध है।

भारतीय मनीषियों ने ‘गौ’ को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानकर उसे ‘माँ’ का स्थान दिया क्योंकि चिकित्सा में उससे प्राप्त मूत्र, दुग्ध, घृत, दधि, गोबर (पंचगव्य) का अत्यधिक महत्व वर्णित है। आयुर्वेद में व्याधि की उत्पत्ति पाप कर्मों से होती है और धर्मशास्त्रों में पंचगव्य को महापातक नाशक बताया गया है। इस अन्य में दुग्ध विषयक प्रश्नों का उत्तर आचार्य ने पूर्णरूप से दिया है।

हारीत संहिता चिकित्सा प्रधान ग्रन्थ है। इसकी सफल चिकित्सा विधि वैद्य एवं रुग्ण के लिए उपयुक्त है। इसकी अन्य हिन्दी टीकायें भी उपलब्ध हैं फिर भी सुधीजनों की प्रेरणा से मैं इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करने को प्रयत्नशील हुआ। यह अनुवाद ‘निर्मला’ हिन्दी टीका के नाम किया गया है। ग्रन्थ के सम्पादन में श्रीवेङ्कटेश्वर प्रेस, मुम्बई से प्रकाशित संस्करण तथा सहयोग लिया गया है। सुधीजनों से अनुरोध है कि यह मेरा प्रथम प्रयास है। इसमें उपलब्ध त्रुटियों को मुझ तक पहुँचाने का कष्ट करेंगे। आशा है यह भाषा टीका बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय सिद्ध होगी।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Harit Samhita (हारीत संहिता)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×