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Ishvasya Upnishad (ईशावास्योपनिषद)

212.00

Author Dr. Shashi Tiwari
Publisher Bharatiya Book Corporation
Language Hindi
Edition 2024
ISBN 978-81-851228-1-6
Pages 186
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0439
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Description

ईशावास्योपनिषद (Ishvasya Upnishad) उपनिषद् वैदिक आर्यों के समग्र आध्यात्मिक चिन्तन की अनुपम शेवधि हैं। ईशावास्योपनिषद् अध्यात्म-विद्या के इसी अद्भुत कोश की एक देदीप्यमान मणि है, जिसने अपने उत्कृष्ट तत्त्वज्ञान के आलोक द्वारा सदा से ही मनीषी- चेतना को विमुग्ध किया है। मूलतः तो यह उपनिषद् शुक्लयजुर्वेदसंहिता का अन्तिम अध्याय है, पर अपने सर्वातिशायी महत्त्व के कारण एक स्वतन्त्र उपनिषद् के रूप में अधिक प्रसिद्ध है। इसमें जगत् की निस्सारता और ब्रह्म की सत्यता का मुख्यरूप से निरूपण है। यहाँ केवल वेदान्तदर्शन के आधारभूत सिद्धान्तों का प्रतिपादन ही नहीं है, अपितु श्रेयस् और प्रेयस् की प्राप्ति के लिए मानवजीवन-पद्धति का संविधान भी प्रस्तुत किया गया है। दार्शनिक विचारों की विलक्षण प्रस्तुति द्वारा इसके मन्त्रों का गम्भीर अर्थ और गूढ उपदेश अधिक क्लिष्ट और दुज्ञेय प्रतीत होता है, तथापि मानवमात्र के लिए कल्याणपथ का निर्देशन करने के कारण यह उपनिषद् चिरकाल से ही प्रबुद्धजनों के अध्ययन, अध्यापन और चिन्तन का विषय बनी हुई है।

आज ईशावास्योपनिषद् के कई संस्करण उपलब्ध हैं। इस उपनिषद् के विशेष तत्त्वज्ञान और अर्थगाम्भीर्य से प्रभावित होकर विश्व के अनेकानेक विद्वानों ने समय-समय पर इस पर विस्तृत भाष्य अथवा व्याख्याएं लिखी हैं। भारत में ही शुक्लयजुर्वेदसंहिता के सुप्रसिद्ध प्राचीन भाष्यकार – उवट और महीधर से लेकर प्रख्यात आधुनिक चिन्तक-राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, सी० राजगोपालाचारी, श्री अरविन्द, डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, आचार्य विनोबा भावे इत्यादि द्वारा यह बहुविध व्याख्यात रही है। विभिन्न वेदान्त- सम्प्रदायों के प्रतिष्ठापक मान्य आचार्यों जैसे- शङ्कराचार्य, मध्वाचार्य, वेदान्तदेशिक इत्यादि ने अपने-अपने अभिमत दार्शनिक मतों के अनुसार इसके मन्त्रों की व्याख्या की है। प्राचीन संस्कृत भाष्यों के कई अंग्रेजी और हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध हैं। यही नहीं, अनेक भारतीय और विदेशी विद्वानों ने अपने स्वतन्य दृष्टिकोण से ईशावास्योपनिषद् के अर्थ और दर्शन की विवेचना करते हुए छोटे-बड़े अन्य रचे हैं। ये सभी ग्रन्थ तत्त्वज्ञानबोधक ईशावास्योपनिषद् के मन्त्रार्थ को विविध रूपों में प्रकाशित करते हैं। आज के वैज्ञानिक युग का जिज्ञासु अध्येता किसी निश्चित अर्थ-धारणा से पूर्व सभी विद्वानों के मतों से अवगत होना चाहता है, परन्तु व्यस्ततावश स्वयं को सभी संस्करणों के अवलोकन में असमर्थ पाता है। और फिर, उपनिषद् के उच्चस्तरीय अध्ययन के लिए भी उसके मन्त्रों के सभी निर्दिष्ट और सम्भावित दार्शनिक अर्थों का अनुशीलन अपेक्षित है। अतः प्रस्तुत संस्करण में प्रयास किया गया है कि इस उपनिषद् के गहन तथा अनेकशः व्याख्यात प्रतिपाद्य अर्थ को विभिन्न व्याख्याकारों की व्याख्याओं के परिप्रेक्ष्य में एक आलोचनात्मक एवं व्यापक दृष्टि से समझा जा सके।

उपनिषदों की शीर्षस्थानीय इस उपनिषद् पर कोई नवीन विचार व्यक्त कर सकना अत्यन्त दुष्कर है। अनेक प्राचीन प्रमुख आचायों द्वारा लिखित भाष्य तथा आधुनिक भारतीय एवं विदेशी विद्वानों द्वारा किए गए अनुवादों अथवा व्याख्याओं के आधार पर मन्त्रों के अनेक अर्थों का एक स्थान पर समीक्षात्मक प्रस्तुतीकरण और आवश्यकतानुसार उनके मतों में भेद और समानता का दर्शन प्रस्तुत संस्करण को तैयार करने का प्रधान लक्ष्य है। सभी व्याख्याकारों के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का उल्लेख परिशिष्ट के अन्तर्गत सन्दर्भग्रन्थसूची में किया गया है। प्रस्तुत संस्करण में ईशावास्योपनिषद् का काण्वशाखीय पाठ अपनाया गया है। परन्तु यथास्थान पाठभेद भी दिए गए हैं। अद्वैत वेदान्त के आद्य आचार्य श्रीशङ्कर के सर्वाधिक प्रामाणिक भाष्य को पाठकों की सुविधा के लिए सङ्कलित किया गया है। शाङ्करभाष्य ही अधिकतर मन्त्रार्थनिर्धारण का मूलाधार रहा है। यही कारण है कि यहाँ प्रायः शाङ्करभाष्य के अनुसार ही हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। मन्त्रों के अर्थ-व्याख्यान के अन्तर्गत भी पहले शङ्कराचार्य और दूसरे अद्वैताचार्यों द्वारा किए गए अद्वैतपरक अर्थों के आधार पर अद्वैतमत से मन्त्र की विवेचना की गई है; अनन्तर ही व्याख्या में दूसरे प्राचीन आचार्यों और आधुनिक व्याख्याता विद्वानों द्वारा निर्दिष्ट अर्थों और विचारों को समाम्नात किया गया है। विविध मतों के भावों को संगृहीत करती हुई ‘ईशावास्यम्’ इत्यादि मन्त्रों की इस विशद व्याख्या द्वारा निश्चय ही प्रस्तुत उपनिषद् की व्यापक अर्थवत्ता प्रकट होती है। मन्त्र-व्याख्या को अधिक स्पष्ट और पुष्ट करने के उद्देश्य से उपनिषद् के महत्त्वपूर्ण शब्दों पर व्युत्पत्ति, व्याकरण, स्वर, अर्थ और प्रयोगविषयक विस्तृत टिप्पणियां दे दी गई हैं। टिप्पणियों में व्याख्यात शब्दों की अनुक्रमणिका परिशिष्ट में संलग्न है। भूमिका में ईशावास्योपनिषद् से सम्बद्ध विविध पक्षों की विवेचना प्रस्तुत करते हुए इस अध्ययन को सर्वाङ्गीण बनाने का प्रयत्न किया गया है।

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