Kashika Vritti Vol. 1 (काशिकावृत्ति भाग-1)
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Author | Dr. Kanta Bhatiya |
Publisher | Bharatiya Book Corporation |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2024 |
ISBN | 978-81-851228-9-2 |
Pages | 237 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0440 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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काशिकावृत्ति भाग-1 (Kashika Vritti Vol. 1) आचार्य पाणिनि की सूत्रनिबद्ध अष्टाध्यायी की व्याख्याता परम्परा अत्यन्त प्राचीन एवं विशाल है। ‘त्रिमुनिव्याकरणम्’ का तात्पर्य ही यह है कि पाणिनि कात्यायन और पतञ्जलि को एक साथ पढ़ने से ही व्याकरण का अध्ययन सफल हो सकता है। यद्यपि आचार्य पाणिनि के सूत्र अपने आप में संपूर्ण भाषागत शब्दों की सिद्धि करने में सक्षम हैं परन्तु एक तरफ तो उनकी सूत्र रचना पद्धति उनका क्रम तथा व्यवस्था को समझना सामान्य बुद्धि वालों के लिए उतना सरल नहीं है दूसरा भाषा में नित नये शब्द समय समय पर जुड़ते रहते हैं इसलिए आचार्य कात्यायन ने अपने वार्तिको को जोड़कर इस दिशा में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आचार्य पतञ्जलि ने अपने ग्रन्थ महाभाष्य में सूत्रों एवं वार्तिको की विस्तृत व्याख्या की है। अनावश्यक वार्तिकों का प्रतिषेध भी किया है, साथ ही अपने नये वाक्यों को जोड़कर अष्टाध्यायी को हृदयंगम कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
इसके बाद भी अष्टाध्यायी को सरलतया समझने के लिए अनेकों ग्रन्थ लिखे गये जिनमें वामन एवं जयादित्य द्वारा रचित काशिका नाम्नी अष्टाध्यायी वृत्ति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें लेखकों ने कात्यायन एवं पतञ्जलि के आधार पर अष्टाध्यायी पर व्याख्या लिखी है। काशिकावृत्ति पर दो टीकाए उपलब्ध होती है न्यास तथा पदमञ्जरी। इन दोनों ही टीकाओं में काशिका तथा उसमें दिये गये कात्यायन एवं महाभाष्य के मतों को विस्तार से स्पष्ट किया है और साथ ही काशिका में उद्धृत किये गये उदाहरणों की भी विस्तृत सिद्धि करते हुए उन्हें स्पष्ट किया है। ये समस्त व्याकरण ग्रन्थ संस्कृत में उपलब्ध होते हैं छात्रों के लिए इन पर हिन्दी टीकाएँ बहुत कम हैं विशेषतया काशिका वृत्ति पर। काशिका पर न्यास और पदमञ्जरी टीकाओं की हिन्दी व्याख्या सम्भवतः बहुत कम उपलब्ध होती है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर काशिका वृत्ति की हिन्दी व्याख्या लिखने का प्रयास किया है। इसमें दिये गये कात्यायन वार्तिकों तथा महाभाष्य के वाक्यों को भी स्पष्ट किया गया है तथा न्यासकार एवं पदमञ्जरीकार की संस्कृत व्याख्या को भी हिन्दी में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। आशा करती हूँ कि पाठक गण इससे अवश्य लाभान्वित होंगे।
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