Jatak Saar Deep Set of 2 Vols. (जातक सारदीप 2 भागों में)
₹510.00
Author | Dr. Suresh Chandra Mishra |
Publisher | Ranjan Publication |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2016 |
ISBN | - |
Pages | 1070 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RP00010 |
Other | Dispatch In 1-3 days |
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CompareDescription
जातक सारदीप 2 भागों में (Jatak Saar Deep Set of 2 Vols.) त्रिस्कन्ध ज्योतिष के विशेषज्ञ श्री नृसिंहदैवज्ञ रचित यह ग्रन्थ पन्द्रहवीं सदी में दक्षिण भारत में लिखा गया था। मूल संस्कृत श्लोक सहित पहली बार हिन्दी भाषा में इसका व्याख्यात्मक संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है। 55 अध्यायों में सम्पूर्ण होराशास्त्र की क्रमबद्ध प्रस्तुति अनूठी है। छूटे गए पाठ को पूरा करके पुनः सम्पादनपूर्वक प्रस्तुत यह कृति शास्त्र की अमूल्य धरोहर है।
मूल लिपि में सर्वत्र श्लोकसंख्या तथा अध्याय विभाग नहीं बताए गए थे। प्रथम सम्पादक ने स्वयं अध्याय विभाग व श्लोक संख्या का निर्देश कर के इसमें 93 अध्याय बनाए थे। हमने सारे विषय को 58 अध्यायों में ही समेट दिया है। विषय नहीं छोड़ा गया है। श्लोक संख्या 2845 है। चतुर्ग्रहादियुति के फल निर्देशपरक श्लोक सारावली से यथावत् क्रमशः लिए गए थे। हमने कलेवर रक्षार्थ उन श्लोकों को छोड़ दिया है। पुनरावृत्ति, अर्धश्लोक पर भी पूर्ण श्लोक संख्या निर्देश होने से भी कुछ श्लोक कम प्रतीत होंगे। पुनश्च इतना विश्वास दिलाते हैं कि ग्रन्थ का तारतम्य व रवानगी कहीं नहीं टूटी है।
मूल रूप से यह एक संग्रह ग्रन्थ है। ग्रन्थकार ने अपने समय तक उपलब्ध सब प्रसिद्ध उपयोगी ग्रन्थों से श्लोक लेकर तथा कहीं कहीं विषय विस्तार को संक्षिप्त करने के लिए अपने श्लोकों द्वारा इस ग्रन्थ को सजाया है। श्रीनृसिंह दैवज्ञ ने स्पष्टतया कहा है कि वशिष्ठ, पराशर, वराह, गर्ग, लल्ल आदि ने होराशास्त्र लिखे हैं, लेकिन उन से साधारण ज्योतिषी जन्मपत्र में फल लिखने में असमर्थ हैं। इसी लेखन क्रम को दृष्टि में रखकर हमने सारावली, होराप्रदीप, बृहज्जातक, जन्मप्रदीप आदि ग्रन्थों से तत्तद् विषयोपयोगी श्लोकों को लेकर यहाँ संजोया है।
प्रोक्तानि होरागणितानि पूर्वै, र्वशिष्ठगर्गात्रिपराशराद्यैः।
वराहलल्लप्रमुखैश्च तेषु, फलक्रमोनैव कृतो हि यस्मात्।
अतः कुण्डली को सामने रखकर, उसका सटीक फल कहने या लिखने के लिए सर्वोत्तम ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त इसमें 35-36 ग्रन्थों का सन्दर्भ दिया गया है। उनमें से बहुत से ग्रन्थ सम्प्रति देखने या सुनने में भी नहीं आते हैं। अतः प्राचीन अनुपलब्ध ग्रन्थों की झलक देखने के लिए यह ग्रन्थ बड़ा उपयोगी है: यह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। दशाफल में विशेषतया फलादेश उत्तम श्रेणी का है तथा ग्रहयोग, स्वरचक्रों द्वारा जातक फल, नवांशादि वर्गों का फल व प्रत्येक ग्रह से अलग अलग अरिष्ट का विचार अनूठा है। अन्य ग्रन्थों में केवल लग्न व चन्द्र से ही अरिष्ट विचार किया गया है। अप्राप्य ग्रन्थों के उपयोगी भाग को अपने भीतर समेटे हुए, फलादेश का व्यावहारिक क्रम बतलाने वाला यह ग्रन्थ वास्तव में पाठकों का विशिष्ट उपकार ही करेगा।
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