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Jay Prakash Ki Jivan Yatra (जयप्रकाश की जीवन यात्रा)

125.00

Author Kanti Shah
Publisher Sarva Sewa Sangh Prakashan
Language Hindi
Edition 5th edition
ISBN -
Pages 294
Cover Paper Back
Size 13 x 0.2 x 21 (L x W x H)
Weight
Item Code SSSP0062
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Description

जयप्रकाश की जीवन यात्रा (Jay Prakash Ki Jivan Yatra) भारतीय इतिहास का यह एक अद्यतन आश्चर्यजनक अध्याय है कि आजादी के पूर्व जो नेतागण महात्मा गांधी के नजदीक माने जाते थे, उनमें से अधिकांश स्वराज्य के बाद यानी राज्य-सत्ता हासिल होने के बाद गांधी-विचार से दूर होते गये और आजादी की लड़ाई के दौरान जो उनसे दूर नजर आते थे, उनमें से कई गांधी-विचार के करीब आते गये, उसके संवाहक बनते गये। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का नाम ऐसे लोगों में सबसे ऊपर माना जायेगा।

जयप्रकाश नारायण, जिन्हें आदर और प्यार से देशभर में जे.पी. कहा जाता था, अपनी गतिशील क्रान्तिकारी एवं सत्य-शोधक वृत्ति के कारण महात्मा गांधी की उस अभूतपूर्व धारा के ‘लोकनायक’ हैं, जिन्होंने क्रान्ति को मात्र सत्ता-पलट नहीं माना, सम्पूर्णता समग्रता के साथ उसे मानव-मुक्ति की एक आरोहण-प्रक्रिया के रूप में देखा-समझा और विकसित किया।

मार्क्सवाद के अध्येता, मार्क्सवादी और युवा हृदय सम्राट् क्रान्तिकारी जयप्रकाश मानव-मुक्ति की अपनी मूल प्रेरणा के कारण कभी भी जड़ या अन्ध सिद्धान्तवादी नहीं रहे। क्रान्ति के सिद्धान्तों को मानव-मुक्ति के अभियान से जोड़कर वे निरन्तर उन प्रक्रियाओं को बारीकी से परखते रहे, जो मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अपनायी गयी थी और जब भी कोई भटकाव या अटकाव उन्हें दिखायी दिया, वे शोधवृत्ति से उसके परिष्कार की दिशा में सक्रिय हो गये।

दुनिया में जितनी भी क्रान्तियाँ हुई हैं उनमें उन क्रान्तियों के प्रायः सभी नायकों ने सत्ता का नियंत्रण अपने हाथ में रखा है। महात्मा गांधी इसके अपवाद हैं। क्योंकि उन्होंने क्रान्ति को सत्ता-पलट के सीमित दायरे से आगे ले जाने का प्रयोग और प्रयास किया। ‘राज्यसत्ता’ को ही उन्होंने राष्ट्र और समाज के पर्याय के रूप में स्वीकार नहीं किया बल्कि राष्ट्र और समाज को ‘राज्यसत्ता’ से अधिक व्यापक और बुनियादी माना, अतः क्रान्ति की सामाजिक प्रक्रिया से नये मूल्यों पर आधारित समाज-रचना की अपनी अवधारणा के अनुसार नयी व्यूह-रचना बनायी और देश के सामने रखी। इस बुनियादी बात को राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में जे. पी. ने ही समग्रता से स्वीकारा।

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