Jin Sutra Set Of 4 Vols. (जिन सूत्र 4 भागो में)
₹1,827.00
Author | Osho |
Publisher | Divyansh Publications |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2013 |
ISBN | 978-93-80089-71-3 |
Pages | 1778 |
Cover | Hard Cover |
Size | 16 x 16 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | DP0009 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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जिन सूत्र 4 भागो में (Jin Sutra Set Of 4 Vols.) महावीर कहते हैं, संघर्ष न हो तो सत्य आविर्भूत न होगा। जैसे सागर के मंथन से अमृत निकला, ऐसे जीवन के मंथन से सत्य निकलता है। सत्य कोई वस्तु थोड़े ही है कि कहीं रखी है, तुम गए और उठा ली, कि खरीद ली, कि पूजा की, प्रार्थना की और मांग ली। सत्य तो तुम्हारे जीवन का परिष्कार है। सत्य तो तुम्हारे ही होने का शुद्धतम ढंग है। सत्य कोई संज्ञा नहीं है, क्रिया है। सत्य कोई वस्तु नहीं है, भाव है। तो तुम जितने संघर्ष में उतरोगे, जितने मथे जाओगे, जितने जलोगे, जितने तूफानों की टक्कर लोगे, उतना ही तुम्हारे भीतर सत्य आविर्भूत होगा; उतनी ही तुम्हारी धूल झड़ेगी; गलत अलग होगा; निर्जरा होगी व्यर्थ से। झाड़-झंखाड़ ऊग गए हैं, घास-फूस ऊग आया है- आग लगानी होगी, ताकि वही बचे, जिसके मिटने का कोई उपाय नहीं। अमृत ही बचे; मृत्यु को तो खाक कर देना होगा। यह बैठे-बैठे न होगा। इसके लिए बड़े प्रबल आह्वान की, बड़ी प्रगाढ़ चुनौती की जरूरत है।
किश्ती को भंवर में घिरने दे,मौजों के थपेड़े सहने दे भंवर दुश्मन नहीं है। महावीर के रास्ते पर भंवर मित्र है, क्योंकि उसी से लड़कर तो तुम जगोगे; उसी से उलझकर तो तुम उठोगे। उसी की टक्कर को झेलकर, संघर्ष करके, विजय करके, तुम उसके पार हो सकोगे। इसलिए महावीर का मार्ग कहा जाता है, ‘जिन का मार्ग’, जिनों का मार्ग; उन्होंने, जिन्होंने जीता। जिन शब्द का अर्थ हैः जिसने जीता। जैन शब्द उसी जिन से बना। जिन का अर्थ है जिसने जीता।
सभी शब्द बड़े अर्थपूर्ण होते हैं। बुद्ध का अर्थ है जो जागा। जिन का अर्थ है: जो जीता।
जिंदों में अगर जीना है तुझे, तूफान की हलचल रहने दे
– यह प्रार्थना मत कर कि तूफान को हटा लो! फिर तू क्या करेगा?
धारे के मुआफिक बहना क्या, तौहीने दस्तो बाजू है
– यह तो तेरे बाहुओं का अपमान हो जाएगा, अगर तू धारा के साथ वहा।
धाने के मुआफिक बहना क्या…
– फिर तेरे हाथों का क्या होगा? फिर तेरी बाजुओं का क्या होगा? फिर तेरे बल को चुनौती कहां मिलेगी? यह तो अपमान होगा तेरी ऊर्जा का समर्पण – नहीं!
परवर्द-ए-तूफां किश्ती को धाने के मुनवालिफ बहने दे।
यह किश्ती तो तूफान से ही पैदा होती है। यह किश्ती तो तूफान में ही पलती है। यह किश्ती तो जन्मती ही तूफान में है।
परवर्द-ए-तूफां किश्ती को…
– इस तूफान में पैदा हुई जीवन की किश्ती को, धार के मुखालिफ बहने दे, उलटा चलने दे। चल गंगोत्री की यात्रा पर !
महावीर का मार्ग योद्धा का मार्ग है– क्षत्रिय थे, स्वाभाविक है! जैनों के चौबीस ही तीर्थंकर क्षत्रिय थे। लड़ाकों की बात है। लड़ना ही जानते थे। तूफान में ही किश्ती पली थी। तलवार ही उनकी भाषा थी। युद्ध ही उनका अनुभव था। यद्यपि सब युद्ध छोड़ दिया, अहिंसक हो गए; पर क्या होता है, इससे क्या फर्क पड़ता है? चींटी को भी नहीं मारते थे, लेकिन योद्धा होना तो जारी रहा। अपने स्वभाव से कोई भिन्न हो नहीं पाता। संसार भी छोड़ दिया, प्रतियोगिता के सारे स्थान भी छोड़ दिये, जहां-जहां संघर्ष, युद्ध की बात थी, हिंसा थी, सब छोड़ दिया- लेकिन फिर भी योद्धा तो नहीं मिट पाता। जैनों के सारे तीर्थंकर क्षत्रिय हैं। यह आकस्मिक नहीं है। एक भी ब्राह्मण तीर्थकर न हुआ। ब्राह्मण की भाषा लड़ने की भाषा नहीं है; समर्पण की भाषा है; शरणागति की भाषा है।
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