Karmath Guru (कर्मठगुरुः)
₹360.80
Author | Dr. Shiv Prasad Sharma |
Publisher | The Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 4th edition, 2023 |
ISBN | 978-93-88415-10-1 |
Pages | 416 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0025 |
Other | कर्मठगुरुः (सटिप्पणी 'कला' हिंदी व्याख्यासमलंकृतः) |
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कर्मठगुरुः (Karmath Guru) परिवर्तनशील संसार में ‘कर्म’ शब्द से सभी प्रकार के कर्म लिए जाते हैं। प्राचीन काल में सुविधा के लिए वेद को तीन काण्ड में विभाजन किया गया- कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड। इनमें सर्वाधिक वेदमन्त्र कर्मकाण्ड में बताये जाते हैं। ८०००० मन्त्र कर्मकाण्ड में प्रयोग होते हैं, उपासनाकाण्ड में १६००० मन्त्र है तथा ज्ञानकाण्ड में मात्र ४००० मन्त्र हैं। इन्हीं मन्त्रों की व्याख्या अध्यात्म विज्ञान है।
‘गहना कर्मणो गतिः’ के अनुसार यों ही कर्मकाण्ड गम्भीर है, उस पर भी इस समय की बुद्धि तथा पल्लवग्राहिता में तो उपलब्ध कर्मकाण्ड-ग्रन्थों के संस्कृत वाक्यों का अर्थबोध करना भी दुष्कर देखा जाता है। इसीलिए इस कर्मठगुरु ग्रन्थ में संगृहीत कर्मकाण्डों का यथार्थ बोध करके विधिपूर्वक संस्कार आदि का सम्पादन विप्रवर्ण कर सकें, इसी हेतु कर्मठगुरु की ‘कला’ नामक हिन्दी भाषा टीका द्वारा ग्रन्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। इस बृहद् ग्रन्थ में नित्य-नैमित्तिक पूजा-होम और काम्यकर्म नाम से चार प्रकरण है, जिसमें मानव-जीवन के उपयोगी भारतीय संस्कृति के मूल तथ्य का स्मरण कराने के लिए अनेकों ग्रन्थों द्वारा योग्य विषयों का आचार्य ने संग्रह किया है।
आज के सभ्य कहलाने वाले लोग कर्तव्य कर्म नित्य-नैमित्तिक संस्कार से विमुख होकर देवकार्य-पितृकार्य की महिमा को भूल चुके हैं। संस्कारविहीन होने से वे अपनी संस्कृति को भी भूलते जा रहे हैं। विद्वानों द्वारा अनेकों मार्गदर्शन कर्तव्य कर्म के ग्रन्थ में संगृहीत हैं। संस्कृत भाषा की ओर से भी उदास होने के कारण संस्कृति से भी विमुख हो रहे भारतीयता के मूल तत्त्व संस्कृति एवं संस्कृत में ही है। फिर भी लोग दूर हो रहे हैं-संस्कृति, संस्कार और संस्कृत से। मालवीय जी का कथन है-
‘भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा ।
इस प्रकार अनेक शास्त्रों एवं पुराणों में आचार, कर्म पर जोर दिया गया है। फिर भी हमारी प्राचीन परिपाटी का अनुसरण करने में लापरवाही बरती जा रही है। कर्मठगुरु जैसे प्रत्यक्ष प्रेरणा देनेवाली पद्धति ‘यथा नाम तथा गुणः’ कथन को सार्थक करती है। अतः प्रातः स्मरण से लेकर सायं तक के अवश्य करने योग्य कर्मों का संग्रह इसमें संगृहीत हैं, साथ ही नैमित्तिक कर्म में सोलह संस्कारों के साथ ही स्तुति, पूजा, यन्त्र, मन्त्रों का भी यथासम्भव इसमें समावेश किया गया है।
इसमें प्रथम नित्यकर्म प्रकरण में स्नान-सन्ध्योपासन-तर्पण आदि दिया गया है। द्वितीय नैमित्तक प्रकरण में दान-जप आदि का संकल्प-संयोजन दिखलाया गया है। तृतीय पूजाहोम प्रकरण में इस प्रकार की पद्धति दिखाई गई है कि यज्ञोपवीत तथा यज्ञ के उपयुक्त सभी कार्य सुगमता से लघु पाठक भी कर्मकाण्ड का सम्पादन कर सकते हैं। चौथे काम्य कर्म प्रकरण में यजुर्वेद और अन्य तन्त्रग्रन्थों एवं अथर्ववेद से भी संग्रह कर काम्य अनुष्ठान की विधि, मन्त्रों का पुरश्चरण आदि संक्षेप में समझाया गया है। पुत्रेष्टि, अग्निनिर्वापण कौशल आदि चमत्कारपूर्ण विषयों का संग्रह कर ग्रन्थ को सर्वाधिक लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया गया है।
आशा है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से सरलतम करके सभी को सुगमता से समझ में आने वाली इस शिवकृत ‘कला’ नाम की टीका से कर्मकाण्ड-प्रेमियों को लाभ मिला तो यही अपनी सफलता होगी।
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