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Kashi Ki Thirtha Yatra (काशी की तीर्थ यात्रा)

276.00

Author Kiran Singh
Publisher Indica Books
Language Hindi
Edition 2008
ISBN -
Pages 75
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code IB0012
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Description

काशी की तीर्थ यात्रा (Kashi Ki Thirtha Yatra) बनारस – अर्थात् जहां जोवन का रस सदैव बना रहे। यह जीवन-रस यहां अविरल धारा के रूप में सदैव प्रवाहित होता रहता है इसके विभित्र रंग, बदलते सुरों और विविधतापूर्ण ताने-बाने युक्त विभित्र परस्पर विरोधी परिस्थितियों से मुक्त है। इस सभी को एक रंग में रंग देना और यहां की संस्कृतियों का एक दूसरे में समाहित हो जाना ही “बनारस” या शिव की नगरी होना है। शिव की तरल शक्ति गंगा नदी के रूप में प्रवाहित होती है और भगवान शिव पहां प्रतीकात्मक रूप “लिंग” स्वरूप में स्थापित है। काशीवासियों का यह विश्वास है कि भगवान शिव अपने गणों समेत अदृश्य रूप में नगरीय जीवन के सुरताल में विद्यमान है जिसको अनुभूति केवल प्रयुद्ध जनों को होती है।

अनादिकाल से यह नगर देवयुक्त, पौराणिकताओं और अपनी परम्पराओं के आधार पर जोचन की तरंगों को प्रगाढ़ता प्रदान करता आ रहा है। पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया जा चुका है कि काशी में जीवन का इतिहास ईसा काल से एक हजार वर्ष पूर्व से ही अंकित किया जाता रहा है। इसी कारण से यह नगर विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक कहा जाता है। मार्क दिलाईन (१९८८) में एक बार कहा था “बनारस इतिहास और परम्पराओं से भी पुराना है, यह प्राचीन आख्यानों से भी पूर्ववत्ती है और इसका अस्तित्व इन सभी के कुल योग से बने वर्षों से दुगना पूर्ववती है।” बनारस मात्र ईंट-पत्थरों का बना शहर ही नह यह अपने आप में एक जीवंत इतिहास है।

११यों और १२वीं शती के दौरान आक्रमणकारियों द्वारा कम से कम चार बार यह शहर ध्वस्त किया गया परन्तु फिर भी इसको जीवंतता बनी रही, इसे बार- बार पुनजीवित किया गया, धार्मिक स्थलों को पुनः खोजकर उनका पुनर्निर्माण किया गया, अवशेषों की मरम्मत व उन्हें दुबारा निर्मित कर इस शहर की आत्मा क पुनर्जागृत किया गया। इस प्रकार यहाँ पर जीवन की शाश्वतता इसको समाप्त करने के प्रयासों के बावजूद विद्यमान रह सकी।

काशी के विभिन्न स्वरूपों का प्रस्तुतिकरण कुछ इस प्रकार किया गया है:

प्रकाश युक्त नगर (City of Light) वहां उगते सूर्य की स्वर्णिम किरणें चन्द्राकार गंगा नदी से परावर्तित होकर किनारों को देदीप्यमान करती है।

प्रसत्रता युक्त नगर (City of delight) जहाँ उच्चकोटि के आनन्द और मौज मस्ती की अनुभूति होती है।

शक्ति और सामयं (L’ity of might) का नगर जिसमें आकर्षित और अनुभूति करने की शकि है।

हालात या दशाओं का नगर (City of plight) जहां जीवन के उतार-बदात जीवन में बहुधा हो रहे अचानक परिवर्ततों से प्रभावित होती है।

दूर दृष्टि का नगर (City of sight) जहां मानवता एवं देवत्व का संयोग स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

न्यायोचितता का नगर (City of right) जहां मनुष्य के कर्मो के उचित-अनुचित होने का लेखा-जोखा भगवान शिव स्वयं रखते है और तदनुसार आशीर्वचन या दंडस्वरूप आप देते हैं।

काशी खंड (३५.१०) के वर्णन के अनुसार “गंगा नदी, भगवान शिव और देवनगरी काशी तीनों मिलकर परमानंद और मनोहारिता प्रदान करते हैं।” इन भावों से प्रभावित जनमानस पूरे भारत से खिंचकर काशी में निवास करने का इच्छुक हो उठता है और नगर के विभिन्न क्षेत्रों में इनका अपना समुदाय बसता जिससे एक विहंगम सांस्कृतिक छटा चिखरती है।

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