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Kavya Alankar Sutrani (काव्यालंकारसूत्राणि)

Original price was: ₹190.00.Current price is: ₹170.00.

Author Hargovinda Shastri
Publisher Chaukhamba Surbharti Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2015
ISBN 97-89382443353
Pages 304
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0422
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Description

काव्यालंकारसूत्राणि (Kavya Alankar Sutrani)

काव्यतत्त्वङ्गकस्मैचिन्नूरलाय कवये नुमः।

रीतिरात्मेति काव्यस्योद्घोषिणे वामनात्मने ।।

अलंकारक्षास्त्र की महनीयता वैदिकवाङ्मय से लेकर शास्त्र, पुराण, काव्य, नाटकों तक सर्वत्र दिखलायी देती है। इसकी परिसीमा का एक अपना स्वस्थ इतिहास है। देशी-विदेशी आलोचकों ने इसे अपनी आलोचना का विषय बनाया है। उनकी पैनी दृष्टि का परवर्ती विद्वानों ने खण्डन-मण्डन करने के साथ समादर किया है। राजशेखर ने तो इस अलंकारशास्त्र को वेद का सातवाँ बंग माना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने इसे तकं, त्रयी, वार्ता एवं दण्डनीति इन चार विद्याओं का निचोड़ स्वीकार किया है। इससे इसकी उपयोगिता स्वतः सिद्ध हो जाती है।

साहित्य की कल्पना को महत्त्व देने वाले आचार्यों में कुन्तल का नाम प्रमुख है। भोजराज ने भी अपने ‘श्रृंगारप्रकाश’ की आधारशिला साहित्य की कल्पना को ही माना है। इसका एक प्राचीन नाम था – ‘क्रियाकल्प’; बाचार्य बात्स्यायन ने चौंसठ कलाओं के अन्तर्गत ‘क्रियाकल्प’ की भी गणना की है। यहाँ क्रिया का अर्थ है- ‘काव्य’ और कल्प का अर्थ है- ‘विधान’। यह ‘क्रियाकल्प’ अभिधान वैसी प्रसिद्धि को प्राप्त नहीं कर सका, जैसा कि यह ‘अलंकारशास्त्र’ नाम । वामन की दृष्टि में अलंकार केवल शब्द और अर्थ का शोभाधायक बाह्य उपकरण मात्र नहीं है, अपितु यह काव्य में चमत्कारिक गुणों का आधान करने वाला आभ्यन्तर धर्म है। वामन अलंकार शब्द को सौन्दर्य का पर्यायवाची मानते हैं। देखें- ‘सौन्दर्यमलङ्कारः’ १/१/२; और ‘काव्यं ग्राह्यमलङ्कारात्’ १।१।१ । अर्थात् गुण और अलंकार के कारण ही काव्य उपादेय होता है। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में राजशेखर ने ‘काव्य- मीमांसा’ में एक रोचक कथा लिखी है, उसका भी अवलोकन करें।

अलंकारशास्त्र के आचार्यों में सर्वप्रथम ‘भरत’ का नाम आता है, जिन्होंने रस-सम्प्रदाय की स्थापना की। इनका मत है कि नाटक में रस की ही प्रधानता होती है। इन्होंने अपनी कृति ‘नाट्यशास्त्र’ में आनुषंगिक रूप से अलंकारशास्त्र का विवेचन ६-७ तथा १६वें अध्याय में किया है। इनके बाद हमारे सम्मूल भामह द्वारा रचित ‘काव्यालंकार’ एक सर्वमान्य ग्रन्थ के रूप में बाता है। इसमें ६ परिच्छेद हैं।

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