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Kavya Prakash (काव्यप्रकाशः)

425.00

Author Acharya Vishweshwar
Publisher Chaukhamba Surbharti Prakasan
Language Hindi Text Sanskrit Translation
Edition 1st edition, 2023
ISBN 978-93-94829-56-5
Pages 681
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP00997
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Description

काव्यप्रकाशः (Kavya Prakash) काव्यसौन्दर्य को परख करने वाले शास्त्र का नाम ‘काव्यशास्त्र’ है। काव्यशास्त्र के प्रारम्भिक युग में इसके लिए मुख्य रूप से ‘काव्यालङ्कार’ शब्द का प्रयोग होता था। इसीलिए काव्यशास्त्र के आदि युग के सभी आचार्यों ने अपने ग्रन्थों का नाम ‘काव्यालङ्कार’ रखा है। भामह का कारिकारूप में लिखा हुआ काव्यशास्त्र का आदि ग्रन्थ ‘काव्यालङ्कार’ नाम से ही प्रसिद्ध है। उद्भट ने भी अपने ग्रन्थ का नाम ‘काव्यालङ्कारसारसंग्रह’ रखा है। रुद्रट के काव्यशास्त्रविषयक ग्रन्थ का नाम भी ‘काव्यालङ्कार’ है। वामन ने सूत्ररूप में लिखे हुए अपने ग्रन्थ का नाम भी ‘काव्यालङ्कारसूत्र’ रखा। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीनकाल में ‘काव्यशास्त्र के लिए ‘काव्यालङ्कार’ नाम ही अधिक प्रचलित पाया जाता है। इस नाम में आया हुआ ‘अलङ्कार’ शब्द सौन्दर्य अर्थ को बोधन करने वाला है। वामन ने “सौन्दर्यम् अलङ्कार:’ सूत्र लिखकर अलङ्कारशब्द को सौन्दर्यपरक प्रतिपादन किया है।

अन्य सब आचार्यों ने भी काव्य के सौन्दर्याधायक धर्मों को ही ‘अलङ्कार’ नाम से व्यवहृत किया, “काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलङ्कारान् प्रचक्षते” आदि वचन भी इसी मत की पुष्टि करते हैं। इस प्रकार ‘काव्यालङ्कार’ शब्द का अर्थ काव्यसौन्दर्य होता है और उससे लक्षणा द्वारा काव्य सौन्दर्यपरक शास्त्र का ग्रहण होता है। इसीलिए काव्यसौन्दर्य की परीक्षा के आधारभूत मौलिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले ये सभी प्राचीन ग्रन्थ ‘काव्यालङ्कार’ नाम से कहे जाते हैं। इन ग्रन्थों में केवल अलङ्कारों का ही वर्णन नहीं है, अपितु सौन्दर्य को परीक्षा के लिए गुण, दोष, रीति, अलङ्कार आदि जिन-जिन तत्त्वों के ज्ञान को आवश्यकता है उन सभी का प्रतिपादन किया गया है। इसलिए इन नामों में आये हुए ‘अलङ्कार’ शब्द को सौन्दर्यपरक मानकर काव्यसौन्दर्य के प्रतिपादक शास्त्रों के लिए ‘काव्यालङ्कार’ नाम का प्रयोग उचित प्रतीत होता है।

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