Kundalini Jagran (कुण्डलिनी जागरण)
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Author | Dr. Chamanlal Gautam |
Publisher | Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 218 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 2 x 16 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SS0017 |
Other | Dispatched in 3 days |
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कुण्डलिनी जागरण (Kundalini Jagran) कुण्डलिनी जाग्रत होने पर शरीर में विचित्र प्रकार का दिव्य विद्युत उत्पन्न कर देती है। ऐसे अनेक साधु-सन्त, महात्माओं के विषय में सुना जाता है। जिनके मुखमण्डल से तेज के कारण उनकी ओर देखने में चकाचौंध प्रतीत होता है। उन पर आँखे टिकाना भी असम्भव होता है। ऐसा सिद्ध पुरूष यदि क्रोध से किसी को देख ले तो वह भस्म हो जाए या चूर-चूर हो जाए। प्राचीनकाल में ऋषि जो शाप या वरदान देते थे, वह सत्य सिद्ध होते थे
ऊँचे स्तर पर की जाने वाली साधना की परिणति तो अत्यन्त चमत्कारिक रूप से होती है। वर्तमान में भी साधु महात्माओं के आशीर्वाद फलित होते हैं, उनमें कुण्डलिनी की सिद्धि या योग-सिद्धियों का ही चमत्कार भरा पड़ा होता है। सभी योग-शास्त्रिों की एक ही मान्यता है कि कुण्डलिनी जाग्रत होने पर साधक को सिद्ध और मानव को महामानव बना देती है। वस्तुतः शरीर में अनेक शक्तिकेन्द्र विद्यमान हैं जिनके जागरण से मनुष्य में शक्ति सामयों की प्रखरता स्पष्ट रूप से अनुभव में आने लगती हैं।
वस्तुतः कुण्डलिनी जागरण की साधना सफल होने पर अनेकों दिव्य क्षमतायें विकसित होने लगती हैं। ऐसा होने पर साधक सामान्य स्थिति से उठकर विशेष उच्च स्थिति में जा पहुँचता है। इस प्रकार यह साधना क्षमताओं को विकसित करने की अद्भुत भावना समझी जाती है। कुण्डलिनी के पूर्व जागरण से पहले विद्युत ऊर्जा के तूफान उठेंगे, आयेंगे और जायेंगे। उफान आएगा और शान्त हो जाएगा। उच्चतम अनुभूतियों से पूर्व छोटी-२ अनुभूतियाँ भी साधक को होती रहती हैं, तभी तो उसका दिव्यमार्ग प्रशस्त होता चलता है। ऊर्जा के तूफानों से भयभीत न हों। न ही उसकी गति को रोकें। ऊर्जा की गति में सहायक हों। उसके साथ गतिमान हो जायें, मिल जावें । ऊर्जा ऊपर की ओर उठती है, गति तूफान की तरह तीव्र होती है। ऐसा लगता है कि आघात लग रहे हैं। शरीर को रोआँ-२ काँपने लगता है, तन-तन्तु झनझनाते हैं, तूफान में सूखे पत्ते विभिन्न दिशाओं में उड कर नये नये मार्ग अपनाते हैं, वैसे ही ऊर्जा भी अपने नये मार्ग बनाती चलती है, अपना फैलाव विस्तृत करती है। ऐसा भी समय आता है जब शरीर का प्रत्येक तन-तन्तु आन्दोलित होने लगता है और ऊर्जा पूर्णतः फैल जाती है। यह आन्दोलन अब शरीर को पीड़ित नहीं करता, न ही तीव्र कम्पन किसी प्रकार का भय उत्पन्न करती है, वरन् शरीर की पीड़ा जाती रहती है। वही स्थायी पीड़ा अपने रिक्त स्थान पर आनन्द और शांति की पुलक छोड़ जाती है जिसे आज तक संसार के किसी भी वैभव से निर्मित नहीं किया जा सकता और न ही भविष्य में ऐसा सम्भव है।
ऊर्जा जब ऊर्ध्वगामी होती है तो मूलाधार पर धक्के लगते हैं, विस्फोट की तैयारी होती है। शरीर की विद्युत ऊर्जा का संसार जब उठता हुआ मस्तिष्क तक पहुँचा है तो वहाँ भी धक्के लग सकते हैं। साधक को इन तूफानों से किसी प्रकार भी चिन्तित नहीं होना चाहिए। यह तूफान शुभ के लिए हैं। इसके वाद यहाँ – शान्ति का साम्राज्य स्थापित होता है। तूफान की विनाश लीला का निर्माता समझने वाला ही उन्हें राक्षसराज की संज्ञा देता है और मन में शरीर विनाश की कल्पना करने लगता है। परन्तु जिस उत्साही साधक में इन ऊर्जा के तूफानों से टकराने का साहस उत्पन्न हो जाता है, वह उन्हें केवल नाटक की तरह देखता है। इसके देखते ही देखते तूफान शान्त हो जाता है और असाधारण शक्तियों का स्वामी बन जाता है। दिव्य शक्तियाँ उसके साहस से प्रसन्न होकर अलौकिक अनुभवों की वर्षा करती है। इस महावर्षा का एक-एक अनुभव उसके लिए शक्ति व सिद्धि के भण्डार खोल देता है ओर वह जीवन निर्माण के नये पथ निर्मित करता चलता है।
कुण्डलिनी के जाग्रत्न होने पर दिव्य आकृतियाँ, दिव्यगन्ध, दिव्यरस, दिव्य स्पर्श और दिव्य अनाहत ध्वनियों की अनुभूतियाँ होती हैं। मूलाधार चक्र में झनझनाहट होती है। उड्डियान, जालन्धर व मूलबन्ध अपने आप स्थिर होने लगते हैं। श्वांस स्वमेव बन्द हो जाती है, केवल कुम्भक बिना श्रम के सिद्ध हो जाता है। प्राणशक्ति का विद्युत प्रवाह सहस्रार की ओर प्रवाहित होने लगता है।
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