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Laghu Siddhant Kaumudi (लघुसिद्धान्तकौमुदि)

98.00

Author Dr. Kaushal Kishor Pandey
Publisher Chaukhambha Sanskrit Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2023
ISBN 978-81-52654-412
Pages 506
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSS0135
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Description

लघुसिद्धान्तकौमुदि (Laghu Siddhant Kaumudi) संस्कृत भाषा का ही दूसरा नाम महर्षियों ने देववाणी कहा है- “संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः ”

संसार की अनेक भाषाओं में यही एक भाषा है जो वस्तुतः स्वर्ग से अवतीर्ण हुई है। इसलिए की विश्व के सबसे प्राचीन और अनादि ग्रन्थ वेद की रचना सर्व प्रथम भगवान् इसी भाषा में किया है।

अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।
आदौ वेदत्रयीं दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः ॥

प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय मनीषियों के सद्विचार से ओत-प्रोत होने के कारण संस्कृत वाङ्मय का महत्त्व लोकोत्तर होता गया है। देश की सम्पूर्ण संस्कृति सारा इतिहास तथा सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान संस्कृत में ही निहित है। विज्ञान कोश का रत्नाकर ऋग्वेद को भी संस्कृत भाषा में लिखा गया है, यही कारण है कि दूसरे देशों के विचारकों ने भी संस्कृत के प्रत्येक अंश का अध्ययन एवं अनुसंधान तन्नमयता से करते हैं। अंग्रेजी के रङ्ग में रङ्गे हम भारतीय संस्कृत को उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। भारतवासियों के मन में एक प्रकार का भाव उत्पन्न हो गया है कि संस्कृत का अध्ययन कर तथा संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाकर भारत की शासन व्यवस्था को नहीं चलाई जा सकती; यही कारण है कि अंग्रेजी और उर्दू को बलात् भारत की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया। परन्तु यह धारणा सर्वथा अनुचित है क्योंकि संस्कृत की संस्कृति में पले भारत का शासन सूत्र संस्कृत के राष्ट्रभाषा होने से जितना अक्षुण्ण रह सकता है, उतना अन्य भाषा के राष्ट्रभाषा होने से नहीं।

निष्पक्षभाव से यदि विचार किया जाय तो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों को राष्ट्रभाषा हिन्दी होने से जितनी कठिनाई होती है उतनी संस्कृत से नहीं, क्योंकि इन राज्य की भाषाओं में संस्कृत के अस्सी प्रतिशत शब्द का प्रयोग मिलता है। हिन्दी भी सौन्दर्य धारण संस्कृत से करती है। इसलिए भारत की राष्ट्रभाषा संस्कृत का होना अत्यावश्यक था, इससे संस्कृत भाषा के मुख से लगा हुआ ताला टूट जाता और हम भारतीय एक स्वर से ‘संस्कृत भाषा की जय हो’ के नारे से संस्कृत का स्वागत करने लगते। आचार्य वरदराज विरचित लघुसिद्धान्तकौमुदी संस्कृत भाषा का दिनकर है, यदि इस ग्रन्थ को अनिवार्यरूप से प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं में अध्यापन प्रारम्भ हो जाए तो अल्प समय में ही महाराज भोज के युग का उदय हो जाएगा।

एक समय एक ब्राह्मण को इंधन के भार से दबे देखकर राजा भोजने पूछा – भूरिभारभराक्रान्तस्तवस्कन्धो न बाधति। ब्राह्मण ने राजा के अशुद्ध वाक्य पर विचार करते हुए उत्तर दिया – तथा न बाधते राजन् ! यथा बाधति बाधते। यानी राजा ने बाधित का प्रयोग किया जो अशुद्ध है बाघते होना चाहिए था।

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