Lilavati (लीलावती)
₹225.00
Author | Prof. Ramchandra Pandey |
Publisher | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 4th edition, 2023 |
ISBN | 978-81-218-0266-0 |
Pages | 342 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0022 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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लीलावती (Lilavati) आचार्य भास्कर द्वारा निर्मित “लीलावती” एक सुव्यस्थित प्रारम्भिक पाठ्य-क्रम है। आचार्य भास्कर ने ज्योतिष शास्त्र के प्रतिनिधि ग्रन्थ “सिद्धान्तशिरोमणि” की रचना शक १०७३ में की थी। उस समय उनकी अवस्था ३६ वर्ष की थी। इस अल्प वय में ही इस प्रकार के अद्भुत ग्रन्थ रत्न को निर्मित कर आचार्य भास्कर ज्योतिष जगत् में भास्कर की तरह ही पूजित हुये तथा आज भी पूजित हो रहे हैं। सिद्धान्तशिरोमणि के प्रमुख चार विभाग हैं। १ – व्यक्त गणित या पाटी गुणित (लीलावती), २ – अव्यक्त गणित (बीजगणित), ३ – गणिताध्याय, ४ – गोला-ध्याय। चारों विभाग ज्योतिष-जगत् में अपनी-अपनी विशेषताओं के लिए विख्यात हैं तथा ज्योतिष के मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
इस ग्रन्थ को प्रमुख तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम खण्ड में परिभाषा, अङ्कों के स्थान, अभिन्न-भिन्न परिकर्माष्टक, गुणकर्मादि श्रेणी व्यवहार पर्यन्त अनेक व्यवहार गणितीय सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। द्वितीय खण्ड में क्षेत्रव्यवहार, त्रिभुज, चतुर्भुज, अनेकभुज वृत्त आदि के फल की विधि दर्शायी गई है। तृतीय खण्ड में खात व्यवहार से अंकपाश पर्यन्त सात व्यवहारों का सन्निवेश है।
लघु कलेवर युक्त इस ग्रन्थ में गणित के प्रायः सभी प्रारम्भिक व्यावहारिक विषयों का समावेश कर दिया गया है। जिससे यह एक पाठ्यग्रन्थ के हा में पूर्णतः उपयुक्त है। निःसन्देह यह कहा जा सकता है कि जिस छात्र ने लीलावती को हृदयंगम कर लिया हो उसकी गणित शास्त्र में अप्रतिहत गति हो सकती है। लीलावती में भास्कराचार्य की मौलिकता सर्वत्र लक्षित होती है। उनकी प्रखर प्रतिमा किसी नये तथ्य के अनुसन्धान में तल्लीन रहती थी। लीलावती में भी उनकी इस प्रतिभा का परिचय मिलता है। परिध्यानयन में जो सूक्ष्मता लाने का प्रयास किया है उसे आधुनिक गणितज्ञों ने भी सराहा है।
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