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Maha Prasthan (महाप्रस्थान)

27.00

Author Dr. Bhagwan Tiwari
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi
Edition 1st edition, 2002
ISBN 81-87415-36-3
Pages 252
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 18 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0187
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Description

महाप्रस्थान (Maha Prasthan) मूल रूप से मैं आलोचक रहा हूँ। अध्यापक होने के नाते साहित्य की विभिन्न विधाओं का अध्ययन और अनुशीलन करता रहा। अध्यापक तथा आलोचक, लेखक और पाठक के बीच बिचौलिये का काम करता है। ज्ञान के प्रचार-प्रसार में अध्यापक और आलोचक का विशेष योगदान रहता है। आलोचना-प्रत्यालोचना होती रही और मैं अपने लेखकीय उत्तरदायित्व का मुस्तैदी से निर्वाह करता रहा। एक दिन पूजा-अर्चना के बाद मैं अतीत की स्मृतियों के भंवरजाल में फंस गया। समकालीन परिवेश की घटनाएँ मेरे मन को झकझोरने लगीं। बेचैनी बढ़ती गयी। मेरी गति भंवर में पड़े हुए तिनके के समान हो गयी। अचानक अन्तरात्मा की ज्योति जगमगा उठी। आत्मबोध हुआ। ऐसा अहसास हुआ कि भीतर से कोई कह रहा है, ‘अरे भाई। दीन-दुखियों की पीड़ा को शब्दों में उतारो। प्रभु का आदेश मानकर अपने समय को परखो। क्या भ्रष्ट व्यवस्था से तुम्हारा मन आहत नहीं होता ? क्या नारी उत्पीड़न और दलितों के शोषण और उन पर ढाये गये जुल्मों से तुम्हारा मन द्रवित नहीं होता ? याद रखो, सदियों से संतप्त लोगों के घाव को वाणी देना लेखक का फर्ज है।

कहानी-लेखन में जुट जाओ और इंसानी उसूलों तथा मानवीय गरिमा से पूर्ण कहानियों को लिपिबद्ध कर एक नये संसार की संरचना करो।’मुझे आत्मज्ञान हुआ और सरस्वती की आराधना में मैं जुट गया। गाँव का रहने वाला हूँ। गाँव की सच्ची-सच्ची घटनाओं को मैंने देखा है। उच्च शिक्षा महानगर में सम्पन्न हुई है। यहाँ तो रोजाना ही आदमियों को जिन्दगी से जूझते हुए मैं देखता हूँ। सारे-सारे अनुभव मेरी स्मृति में बसे हुये है। अनुभव की आग में तपी हुई घटनाओं को बिम्बित करने के लिये मैं कहानी लिखने लगा। मेरी कहानियों में संघर्षरत आदमी के जीवन की सच्ची तस्वीर पाठकों को दिखलाई पढ़ेगी। मेरी कहानियों में सही परिवेश में ‘वास्तव’ को पकड़ने का प्रयास किया गया है। मेरी हर कहानी यथार्थोन्मुखी है। मैं कल्पित यथार्थ का पक्षधर नहीं हैं। बनना भी नहीं चाहता। सच्ची, वही कहानी होती है, जिसकी नींव जमीन पर अधिष्ठित होती है।

सन् १९५० से लेकर आज तक हिन्दी साहित्य में नाम बदल-बदल कर अनेक कहानी-आन्दोलन चले हैं, उनमें से किसी से मेरा न तो कोई लगाव है. न ही सरोकार। अंगरेजी भाषा के लेखकों की कहानियों को पढ़ने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है। अंगरेजी लेखकों की कहानियों के शिल्पगत आयामों को मैंने अच्छी तरह पढ़ा है, पर अनुकरण नहीं किया है। रही बात कथ्य की तो पाश्चात्य जीवन-शैली और भारतीय जीवन-शैली में जमीन-आसमान का अन्तर है। बाहरी साहित्यकारों से प्रेरणा ग्रहण करना और उसी प्रकार की कहानी लिखना एक प्रकार से बेईमानी है। गैरइंसाफी मैं नहीं कर सकता; जिन्हें करना हो, करें। मेरी कहानियाँ भारतीय परिवेश की उपज हैं। अतः इस जमीन के आम आदमी के जीवन से जुड़ी हुई हैं।

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