Meghadutam (मेघदूतम्)
₹90.00
Author | Shree Vaidyanath Jha Shastri |
Publisher | Chaukhamba Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2021 |
ISBN | - |
Pages | 292 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0560 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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CompareDescription
मेघदूतम् (Meghadutam) काव्य दो प्रकार का होता है- (१) महाकाव्य, (२) खण्डकाव्य। महाकाव्य एक विस्तृत-प्रबंधकाव्य होता है, जैसे रघुवंश, कुमारसंभव आदि। खण्डकाव्य, इसमें पूर्ण जीवन वृत्तान्त नहीं होता अपितु जीवन के एक भाग का वर्णन होता है। प्रकृति में मेघदूत वैसा ही एक खण्डकाव्य है इसे लोग गीतिकाव्य’ भी कहते हैं। यह संस्कृत साहित्य के गीतिकाव्यों में सर्वप्रथम गिना जाने वाला है। कला का चरमपरिपाक, कल्पना की ऊँची उड़ान, परिष्कृत मधुरिमामयी सरस भाषा, विषय की अक्षुण्णगति एवं छन्द की एकतानता का जो समन्वय कालिदास की इस कृति में पाया जाता है वैसा संसार में अन्यत्र मिलना दुर्लभ क्या असंभव ही है। इसका वण्यं विषय अत्यन्त मर्मस्पर्शी है। इसमें दो भाग हैं, पूर्व एवं उत्तर। कोई यक्ष अपनी नवोढा प्रिया के प्रणयपाश में उलझकर अपने कत्र्तव्य में प्रमाद कर जाता है, अतः स्वामी कुबेर के कोप का भाजन ही नहीं शाप का पात्र भी बन जाता है। इस तरह वह यक्ष प्रभु कुबेर के शाप से अपनी भूमि अलकापुरी से निर्वासित होकर एक वर्ष के लिए रामगिरि-पर्वत पर रहता है। पूर्वमेघ में इसी यक्ष की करुण कहानी है।
पूर्वमेघ : – अपनी प्राणेश्वरी के विरह में कृश, कामुक वह यक्ष आषाढ़ मास के प्रारम्भ में मेघ को देखकर जड़ चेतन के विवेक से शून्य-सा होकर उससे अपनी प्रिया के पास संदेश ले जाने के लिए कहता है। पहले मेघ की प्रशंता करता है, अलकापुरी जाने के लिए उसे रास्ते में कहाँ-कहाँ जाना होगा, इन सबका वर्णन पूर्वमेध में जिस ढंग से किया है वैसा तो कोई भी कवि आज तक नहीं कर सका। अलकापुरी के रास्ते में मेघ को कहीं तो भोली-भाली ग्रामीण युवतियों की आनन्दभरी कटाक्षरहित आशान्वित आँखें पीयेंगी तो कहीं वह अपने गर्जन से आकाश में उड़ती बलाकाओं को गिनती हुई सिद्धवनिताओं को डराकर उनके द्वारा अपने प्रियों का आलिङ्गन करवाकर उनके धन्यवाद का पात्र बनेगा। आगे वह उज्जयिनी में महाकालेश्वर का दर्शन करेगा एवं अपनी विद्युत् के द्वारा अभिसारिकाओं को केवल मार्ग ही दिखायेगा – गरजकर उन्हें डरायेगा नह। इसके बाद ज्ञातास्वाद रसिक की तरह वह मेघ विवृत-जघना नायिका के समान गम्भीरा नदी का रसास्वाद करेगा। इस प्रकार वह ब्रह्मावर्त, क्रौंचपर्यंत आदि मागों का अतिक्रमण कर अलका में पहुँचेगा।
उत्तरमेघ :- मेघ उस अलका में पहुँचेगा जहाँ की लड़कियाँ रत्नों को धूल में छिपा-छिपाकर आंखमिचौनी खेला करती हैं, जहाँ की कामिनियाँ अपने को विवस्त्रा होती देखकर लज्जा से चूर्णमुष्टियों से मणिदीपों को बुझाना तो चाहती हैं पर बुझा नहीं पातीं और जहाँ के राजमार्ग प्रातःकाल अभिसारिकाओं के कानों से गिरे कनक-कमल धागे के टूट जाने से बिखरी हुई मालाएँ और पैरों से कुचले हुए मन्दार पुष्पों के द्वारा उनके अभिसरण की सूचना देते हैं। तदनन्तर यक्ष, मेघ से अपने निवास स्थान का सरस एवं विलासपूर्ण वर्णन करता है तथा तन्वी अपनी प्रिया की जो स्त्रियों के सम्बन्ध में विधाता की सर्वप्रथम सृष्टि है विरविदग्ध क्लान्तदशा का बड़ा ही हृदयस्पर्शी वर्णन करता है। अन्त में यक्ष मेघ से अपनी प्रिया के लिए वह सन्देश कहता है जिससे सहृदयों का हृदय करुणा एवं आनन्द के अपारसागर में निमग्न हो जाता है, जिसमें कालिदास ने अपने प्रेमी की भावना को भर दिया है।
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