Mithila Ki Panji Vyavastha (मिथिला की पंजी व्यवस्था)
₹225.00
Author | Shankar Mishra & Ranjeet Mishra |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 2021 |
ISBN | 978-938553974 |
Pages | 106 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0022 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मिथिला की पंजी व्यवस्था (Mithila Ki Panji Vyavastha)
“धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयः मिथिला व्यवहारतः”
पंजीशास्त्र मिथिला, मैथिल एवं मैथिली का ऐसा अनमोल रत्न है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम होगा। क्योंकि इसका सम्बन्ध मानव मात्र से है। परिवार तभी पूर्ण होता है, जब बच्चे स्वस्थ हों। वे आदर्श नागरिक बनकर परिवार, समाज, राज्य, देश का नाम रोशन करें। यह तभी संभव है, जब बच्चे शारीरिक व मानसिक विकृतियों से मुक्त हों।
हमारे ऋषि-मुनियों ने सगोत्र-संबंध, अंतर्जातीय विवाह न करने की सलाह दी। ऐसे विवाह करने से वर्ण संकर संतान होता है। जिनमें या जिनके वंशज में शरीरिक या मानसिक विकृति आ सकती है। इस कारण इसे रोकने का प्रयास करते हैं। इसे विज्ञान भी स्वीकार करता है। मैंने इस पुस्तक में इसी बात को उजागर करने का प्रयास किया है ताकि समाज में वर्णसंकर संतान न हो। यदि इस पुस्तक को पढ़ने से ऐसे एक भी विवाह को रोकना संभव हुआ, तो मैं अपना श्रम सार्थक समझूंगा।
यद्यपि इससे पूर्व कई पुस्तकें पंजीशास्त्र पर लिखी गयी। किसी ने भी वैज्ञानिक दृष्टि से देखने का प्रयास नहीं किया। मैंने इस पुस्तक में वैज्ञानिकता पर ही ध्यान देने का प्रयास किया है। जिसमें कितना सफल हुआ हूँ, यह विद्वान् पाठक ही समझेंगे। हमारे पूर्वज पंजीकार, ऐसे विवाह करने वाले को अधर्मी, दोषी स्वीकार करते थे। इसका प्रभाव वंशज पर पड़ता है। इसी बात को ध्यान में रखकर उजागर करने का प्रयास इसमें किया है।
इसके दस अध्याय हैं – प्रथम अध्याय में मिथिला क्यों नाम पड़ा, नर-नारी प्रादुर्भाव आदि पर विचार किया गया है। द्वितीय अध्याय में पंजी प्रबंध का प्रारंभ, कारण, गोत्र, मूल ग्राम की चर्चा की गई है। तृतीय अध्याय में समगोत्र विवाह पर चर्चा की गई है। चतुर्थ अध्याय में संबंध-विवाह-प्रभाव पर विचार किया गया है। पंचम अध्याय में अंतर्जातीय विवाह पर विचार किया गया है। षष्ठ अध्याय में डी.एन.ए., आर.एन.ए. की तुलना की गई है। सप्तम अध्याय में ब्राह्मणों की शाखाओं की चर्चा की गई है। अष्टम अध्याय में अन्य वर्गों के मूल ग्राम आदि की चर्चा की गई है। नवम अध्याय में मिथिला में प्रचलित वैवाहिक कन्या-वर खोज पर विचार किया गया है। दशम अध्याय उपसंहार का है।
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