Mudra Rahasya (मुद्रा रहस्य)
₹76.00
Author | Pt. Harihar Prasad Tripathi |
Publisher | Chaukhamba Krishnadas Academy |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-81-218-0132-X |
Pages | 80 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0160 |
Other | Dispatched in 3 days |
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मुद्रा रहस्य (Mudra Rahasya) ‘मुद्रा’ शब्द का अर्थ प्रमुखतया छाप, मुहर, अंकन आदि से होता है। समाचार-पत्र, पुस्तकें आदि मुद्रित की जाती हैं और जिन स्थानों में ये कार्य होते हैं उन्हें मुद्रणालय के नाम से जाना जाता है। वस्त्रों पर भी विभिन्न प्रकार के बेल-बूटों की छपाई की जाती है। शैव अथवा वैष्णव सम्प्रदाय के भक्तगण अपने शरीरांगों (मस्तक, वक्षःस्थल एवं भुजाओं) पर चंदन के द्वारा भगवन्नामों की छाप का तिलकांकन करते हैं।
उसके अतिरिक्त मुद्रा का अर्थ सिक्का से भी होता है। प्राचीन काल के सिक्कों में तत्कालीन राजाओं के चित्र भी अंकित हुआ करते थे। आधुनिक सिक्कों में भी भारत सरकार के चिह्न अंकित रहते हैं। पूर्वकाल में किसी व्यक्ति या घटना की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए शिलालेख उत्कीर्ण कराये जाते थे। इन दिनों अर्थशास्त्र में भी मौद्रिक प्रणाली अपनायी जाती हैं। मुद्रा के द्वारा मन की भाव-भंगिमा भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। महाराज जनक की रंगभूमि में धनुष-भंग के पश्चात् महर्षि परशुराम का पदार्पण अत्यन्त क्रोध की मुद्रा में होता है जिसे कविवर तुलसीदासजी ने अपने शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया है-
तेहि अवसर सुनि शिवधनु भंगा,
आये रघुकुल कमल-पतंगा।
शीश जटा शशि वदन सुहावा,
रिस वश कछुक अरुण होई आवा ।।
भृकुटी कुटिल नयन रिस राते,
सहजहिं चितवत मनहुँ रिसाते।
अति रिस बोले वचन कठोरा,
कहु जड़ जनक धनुष केहि तोरा ।।
वेगि दिखाव मूढ़ नतु आजू,
उलटौं महि जहँ लगि तव राजू ।।
इसी प्रकार अभिनय या नृत्य के क्षेत्र में भी अंग-संचालन के द्वारा विविध मुद्राएँ प्रदर्शित त्की जाती हैं। देवोपासना में भी आवाहन आदि की मुद्राएँ प्रदर्शित की जाती हैं क्योंकि मुद्रा के अभाव में देवगण भी की गयी पूजा को पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं करते। फलस्वरूप आराधक की पूजा निष्फल हो जाती है। प्रस्तुत पुस्तक ‘मुद्रा रहस्य’ में देवपूजन की मुद्राओं का उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही योगसाधन की मुद्राएँ भी उल्लिखित हैं। योगाभ्यासी साधक मुद्राओं के आश्रयण से जराव्याधि से रहित हो जाता है। इन मुद्राओं के द्वारा अनेक प्रकार के दुःसाध्य रोग भी निर्मूल हो जाया करते हैं। इस पुस्तक के परिशिष्ट भाग में पूजनोपयोगी कुछ नियम भी दे दिये गये हैं, जैसे – देवपूजन की उपयुक्त तिथियाँ, दश महाविद्या के जपमंत्र, जप के विधान, जप का माहात्म्य आदि अनेक विषय दिये गये हैं जो उपासक के लिए परमावश्यक एवं अत्यन्त उपयोगी है।
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