Mudra Rakshasam (मुद्राराक्षसम्)
₹170.00
Author | Dr. Ramashankar Tripathi |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 6th edition, 2021 |
ISBN | 978-81-7124-656-4 |
Pages | 391 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0140 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मुद्राराक्षसम् (Mudra Rakshasam) मुद्राराक्षस’ संस्कृत-नाटक-साहित्य का दैदीप्यमान हीरक है। यह नाटक अपने रचयिता विशाखदत्त की फड़कती प्रतिभा तथा विशद व्यावहारिक ज्ञान का परिचायक है। ‘मुद्राराक्षस’ के अध्ययन से स्पष्ट प्रतीत होता है कि इसके रचयिता न्यायशास्त्र, नाट्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति तथा ज्योतिष के धुरन्धर पण्डित थे।
विशुद्ध कूटनीति से परिपूर्ण राजनीति को आधार बनाकर लिखा गया यह ऐतिहासिक नाटक कदाचित् समग्र संस्कृत-साहित्य के उपलब्ध नाटकों में अपने ढंग की एक निराली ही कृति है। प्रेमाख्यान तथा स्त्री-पात्र से रहित यह नाटक कूटनीतिक घटनाओं का भण्डार है।
इस नाटक में सात अङ्क हैं। इसे जीवन प्रदान करने वाला पात्र वस्तुतः चाणक्य ही है। उसने नन्द-वंश का नाश कर अपने पूर्ण समर्पित भक्त शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को राज्य सिहासन पर बैठा तो दिया अवश्य, परन्तु नन्द राजा के भक्त अमात्यप्रवर राक्षस को अपने पक्ष में लाकर वह उसे चन्द्रगुप्त का मन्त्री भी बना देना चाहता है। इस बुद्धि-कौशल का संघर्ष ही नाटक का मंरुदण्ड है। कहना न होगा कि इस संघर्ष में विजय-श्री ने चाणक्य का ही वरण किया है, उसके ही गले में विजय की माला पहनाई है।
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