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Mukti Bandhan ko Bandhan to Jano (मुक्ति बंधन को बंधन तो जानो)
₹299.00
Author | Acharya Prashant |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt. Ltd |
Language | Hindi |
Edition | First Edition |
ISBN | 9355210612 |
Pages | 368 |
Cover | Paper Back |
Size | 20.3 x 25.4 x 4.7 cm |
Weight | |
Item Code | AZ0059 |
Other | "मानव मन में अगर कोई सबसे आकर्षक शब्द रहा है तो वह है 'मुक्ति'। प्रतिपल हम स्वयं को किसी-न-किसी बंधन में पाते हैं, और वहीं से हमारी मुक्ति की तलाश शुरू होती है। अकसर अपने बंधनों को खोजने पर हम पाते हैं कि वे बाहरी हैं, इसलिए हमारी मुक्ति की तलाश भी बाहरी ही होती है। यह तलाश, कहने की आवश्यकता नहीं, अपूर्ण ही रह जाती है। आचार्य प्रशांत कहते हैं कि बाह्य बंधनों से तो हमें मुक्ति चाहिए ही, परंतु आंतरिक बंधनों एवं कमज़ोरियों से मुक्ति और ज़्यादा आवश्यक है। हम जन्म से ही स्वयं को बद्ध पाते हैं; ऐसे में हमारा एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए—अपनी बेडिय़ों को काटना। भ्रमित जीवन जीना ही बंधन है और विवेकपूर्वक सत्य का साहसिक चुनाव करना ही मुक्ति है। यह चुनाव हमें ही करना है तो स्वयं को एक मौका दें। स्वयं को असहाय और कमज़ोर मानकर बंधनों के साथ जीते रहने में कोई समझदारी नहीं। आपका स्वभाव है मुक्ति। अगर आप भी मुक्त गगन में उन्मुक्त उड़ान भरने के इच्छुक हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए है।" |
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