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Nalchampu (नलचम्पू:)

75.00

Author Acharya Shree Nivas Sharma
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2023
ISBN -
Pages 121
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0551
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Description

नलचम्पू: (Nalchampu) पुस्तक संस्कृत का एक अनमोल ग्रन्थ है। जिसके संस्कृत व्याख्याकार पंडित श्री रामनाथ त्रिपाठी शास्त्री एवं हिंदी व्याख्याकार आचार्य श्री निवास शर्मा जी है। यह पुस्तक नलचम्पू संस्कृत आचार्य श्री निवास शर्मा टीका तथा ‘कल्याणी’ ‘ज्योत्स्ना’ संस्कृत हिन्दी व्याख़्योपेतः प्रथम उच्छ्वासः है। इस पुस्तक में कुल १२१ पृष्ठ है, जो पेपरबैक संस्करण में उपलब्ध है। वर्त्तमान में पुस्तक का द्वितीय संस्करण उपलब्ध है जो २०२३ में प्रकाशित है। यह पुस्तक चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस द्वारा प्रकाशित की गई है।

नलचम्पूः दमयन्ती-कथा प्रथम उच्छ्वास

प्रथमतः चन्द्रमौलि भगवान् शंकर तथा पीयूषवर्षी कवियों के नाग्विलास की प्रशंसा के साथ श्री त्रिविक्रम भट्ट द्वारा ग्रन्थ का आरम्भ किया गया है। समस्त जगत् के उद्भवस्थल काम एवं नवयौवनाओं के नेत्रविघ्नम की सर्वोत्कृष्टता प्रतिपादित करते हुए विबुधानन्दमन्दिरस्वरूपा देवी सरस्वती के मधुर प्रवाह को नमस्कार कर असत् उक्तियों तथा अभद्र कवियों की निन्दा एवं सूक्तियों तथा सत्कवियों की प्रशंसा करते हुए दौर्जनी संसद को भी नमन करने की लोगों को कवि ने सलाह दी है।

सत्कवियों में मुख्यतः वाल्मीकि, व्यास, गुणाढ्य तया बाण को अतिशय आदर के साथ स्मरण करते हुए सभन्न श्लेष के प्रयोग के कारण पाठकों को उद्विग्न न होने को भी सलाह दी गई है। तदनन्तर श्री त्रिविक्रम भट्ट स्वयं के कुल-गोत्र को इंगित करते हुए अपने- आपको शाण्डिल्य-गोत्रीय श्रीधर का पौत्र एवं देवादित्य का पुत्र होना घोषित करते हैं। इस प्रकार परिचयात्मक उपक्रमणिका के पश्चात् ग्रन्थ में वर्णनीय कथा का प्रारम्भ किया गया है।

सर्वप्रथम आर्यावर्त की सम्पत्रता एवं रमणीयता का चित्रण करते हुए उसकी तुलना स्वर्गलोक से की गई है। उसी आर्यावर्त में एक निषधानामक नगरी है, जिसको प्राकारभिति इन्द्रनीलमणि से निर्मित है और जो स्वर्ग की सुषमा से स्पर्धा करने वाली है। इसी नगरी में महाप्रतापी, समुद्रान्त पृथ्वी के कीर्तिस्तम्भस्वरूप महाराज नल निवास करते हैं। उनके मन्त्री सालङ्कायनपुत्र श्रुतशील हैं, जो समस्त विद्याओं के आधारस्तम्भ होते होते हुए भी नल के लिए द्वितीय प्राण के समान हैं। उनके कारण राज्य की शासन-व्यवस्था सुव्यवस्थित रूप से सञ्चालित है, जिससे महाराज नल राज्य के चिन्ताभार से पूर्णतः मुक्त होकर आखेट, विहार एवं आमोद-प्रमोद में मग्न रहते है।

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