Namarupajnanam (नामरूपज्ञानम्)
₹234.00
Author | P.V. Sharma |
Publisher | Chaukhambha Viswabharati |
Language | English & Sanskrit |
Edition | 2018 |
ISBN | 978-93-81301-09-8 |
Pages | 218 |
Cover | Paper Back |
Size | 15 x 2 x 17 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CVB0023 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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नामरूपज्ञानम् (Namarupajnanam) सम्प्रति विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में पुस्तकों की बाढ़ सी आ गयी है किन्तु अभी भी मानक ग्रन्थों के प्रकाशन की अपेक्षा पूरी नहीं हुई हैं। भारतीय ज्ञान-विज्ञान एवं समाजशास्त्र के क्षेत्रों में उच्च कोटि के प्रामाणिक एवं मौलिक ग्रन्थों को प्रकाशित करने के उद्देश्य से सत्यप्रिय प्रकाशन की स्थापना की गयी है। इसके मूल में परमपूज्य बड़े बाबू जी (स्व० पं० सत्यव्रत शर्मा) एवं पिताजी (आचार्य प्रियव्रत शर्मा) का आर्शीवाद निहित है जिसके सम्बल से ही सत्यप्रिय प्रकाशन अपने लक्ष्य के चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर सकेगा।
आयुर्वेद एक प्राचीनतम जीवन-विज्ञान है जिसे महर्षियों ने अपने अलौकिक ज्ञान से संहिताओं के द्वारा समृद्ध किया है। परवर्ती काल में भी अनेक ग्रन्थों की रचना हुई। आधुनिक काल में इस प्राचीन विज्ञान के रहस्यों को उपयुक्त भाषा में अभिव्यक्त करना आवश्यक है जिससे यह सर्वसुलभ हो सके और इसका भी संकेत मिल सके कि उन निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए प्राचीन आचार्यों ने क्या पद्धति अपनायी थी।
प्रस्तुत ग्रन्थ ‘नामरूपज्ञानम्’ इसी दिशा में नवीनतम और सर्व- प्रथम मौलिक रचना है। आधुनिक काल में वनस्पतियों के परिचय का विज्ञान अत्यन्त समृद्ध है किन्तु आयुर्वेद के आचार्यों ने इस समस्या का समाधान कैसे किया था और विभिन्न नामों और पर्यायों की रचना करके वनस्पतियों का स्वरूप कैसे प्रस्तुत किया था इसकी जानकारी इससे मिलेगी। आशा है, यह ग्रन्थ आयुर्वेद एवं वनस्पतिशास्त्र के अध्यापकों, विद्यार्थियों एवं शोधछात्रों के लिए उपयोगी एवं मार्गदर्शक सिद्ध होगा सत्यप्रिय प्रकाशन के उद्घाटन के लिए पूज्य पिताजी ने अपनी यह अमूल्य कृति मुझे प्रदान की इसके लिए मैं सादर आभारी हूँ। महावीर प्रेस को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस ग्रन्थ को अल्प समय में एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से मुद्रित किया।
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