Natya Parmpara Me Prakriti Vichar Evam Bharatiya lokanatya (नाट्य परम्परा में प्रकृति विचार एवं भारतीय लोकनाट्य)
₹864.00
Author | Dr. Sunita Atal |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | 978-9385539305 |
Pages | 248 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0025 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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नाट्य परम्परा में प्रकृति विचार एवं भारतीय लोकनाट्य (Natya Parmpara Me Prakriti Vichar Evam Bharatiya lokanatya) नाट्यशास्त्र नाट्यकर्ताओं के लिए मानक ग्रन्थ है एवं सौन्दर्यशास्त्र के लिये आर्क ग्रन्थ है जो कि समस्त नाट्य काव्य एवं ललितकलाओं को समेटे हुये हैं। नाट्यशास्त्रीय परम्परा में लोकधर्मी एवं नाट्यधर्मी परम्पराओं को स्वीकार किया है जो कि संस्कृत नाट्यों तथा शास्त्रीय नाट्यों समान रूप से स्वीकार की गई हैं। इतिहासादि के वाक्यों का अतिक्रमण करने वाली कल्पनात्मक क्रिया से युक्त, प्राणियों एवं भावों का अतिक्रमण करने वाली लीला से युक्त, अंगहारों के अभिनयों से युक्त, नाट्यलक्षण से लक्षित स्वर एवं अंलकारों से युक्त जो नाट्यधर्मी है उस परम्परा को लोकधर्मी नाट्य परम्परा को शामिल करना है।
रंगमंच अपने आप में सम्पूर्ण अनुभव है और इसमें चार तरह के अभिनय तथा उसमें प्रस्तुति के दो सोपान होते हैं- लोक एवं नाट्य। इस विषय में नाट्यशास्त्र, नाट्यदर्पण, भावप्रकाशन, अभिनयदर्पण, श्रंगारतिलक, सरस्वतीकण्ठाभरण, रसमंजरी एवं उज्जवलनीलमणि इत्यादि ग्रन्थों में वर्णित प्रकृति विचार का राजस्थानी लोक नाट्य के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया गया हैं।
राजस्थानी लोक नाट्य के शास्त्रीय एवं प्रायोगिक पक्ष का समान रूप से अध्ययन कर सारगर्भित रूप में किया गया हैं। अभिनय की दो भिन्न पद्धतियों की ओर संकेत करती हैं। इन दोनों पद्धतियों का सम्बन्ध प्रकृति विचार से हैं। भरत द्वारा निर्दिष्ट नाट्यानुशासन लोकनाट्यों ने नाट्यशास्त्रीय विधियों और रूढ़ियों को बडी सहजता से आत्मसात किया है। यहीं नहीं बल्कि ये लोकनाट्य अपनी अन्तर्वस्तु और शिल्प की सर्जनात्मकता में इन रूढ़ियों को रूपान्तरित भी करते हैं।लोकनाट्यों की रंगयोजना, मंच-परिकल्पना, अभिनय विधि, वेश-सज्जा एवं गीत संगीत प्रधानता आदि के भीतर हमें आज भी नाट्यशास्त्र की समग्रता मूलक सर्जनात्मकता रंग परिकल्पना के चिन्ह मिल जाते हैं।
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