Nitishatakam (नीतिशतकम्)
₹166.00
Author | Dr. Kiran Devi |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit Text with Hindi Translation |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-93-89665666 |
Pages | 194 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0596 |
Other | Dispatched in 3 days |
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नीतिशतकम् (Nitishatakam) योगिराज भर्तृहरि के ‘शतकत्रय’ में से “नीतिशतक” एक है। यह शतक नीति की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शतक है। नीतिशतक के माध्यम से मनुष्य जाति को कुछ विशेष नैतिक सिद्धान्तों की शिक्षा दी गयी है। कवि का कहना है कि, मूर्ख होना अभिशाप है, अविवेक पतन का लक्षण है, विद्या ही मनुष्य का सच्चा भूषण है, आत्म सम्मान की रक्षा हर कीमत पर करनी चाहिए, परोपकार से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है, जिस प्रकार वृक्षों का काम है फल देना, मेघों का काम है जल देना, नदियों का काम है दूसरों के लिए बहना, उसी प्रकार सज्जनों का काम है दूसरों का उपकार करना।
धन उपार्जन करना आवश्यक है, क्योंकि धन के बिना मनुष्य के सारे गुण व्यर्थ हो जाते हैं। धन भाग्य से ही मिलता है अतेव मनुष्य की भाग्य बनाने के लिए सत्कर्म करते रहना चाहिए। शील (सदाचार) का मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्व है। शील (सदाचार) की रक्षा पर भर्तृहरि बहुत जोर देते हैं, उनका विचार है कि, ऊँचे पहाड़ पर शिखर से अपने को नीचे किसी कठोर पत्थर पर गिराकर जान दे देना अच्छा है, बड़े विषैले साँप के तीखे दाँतों के बीच हाथ डाल देना कहीं अच्छा है, जलती हुई या धधकती हुई अग्नि में कूद पड़ना कहीं अच्छा है, परन्तु शील या चरित्र भ्रष्ट होना मरे हुए के समान है। प्रस्तुत पुस्तक की टीका पाठकों के हित को ध्यान में रखकर ही की गयी है। अतः यह पुस्तक छात्रोपयोगी एवं प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा विश्वास है।
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