Panchadashi (पञ्चदशी)
₹150.00
Author | Aacharya Karunapati Tripathi |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit |
Edition | 2nd edition, 1997 |
ISBN | - |
Pages | 656 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 3 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0039 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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पञ्चदशी (Panchadashi) ‘पञ्चदशी’ अद्वैत वेदान्त के विवरण-प्रस्थान का प्रमुख पद्यबद्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता स्वामी विद्यारण्य और उनके गुरू भारतीतीर्थ हैं। यह वेदान्त दर्शन का प्रारंभिक और सर्वमान्य ग्रन्थ है। पञ्चदशी सेतुबन्ध, रामेश्वर से लेकर हिमालय तक अद्वैतवेदान्त का लोकप्रिय ग्रन्थ माना जाता है।
स्वामी विद्यारण्य की अमूल्य कृति पंञ्चदशी में १५ प्रकरण हैं। प्रथम पाँच प्रकरण विवेकान्त हैं-तत्त्वविवेक, पञ्च महाभूतविवेक, पञ्च महाकोशविवेक, द्वैतविवेक और महावाक्यविवेक। बीच के पाँच प्रकरण दीपान्त हैं- चित्रदीप, तृप्तिदीप, कूटस्थदीप, ध्यानदीप और नाटकदीप। अन्तिम पाँच प्रकरण आनन्दान्त हैं- योगानन्द, आत्मानन्द, अद्वैतानन्द, विद्यानन्द और विषयानन्द। इन पञ्चदश प्रकरणों में मध्य के पाँच प्रकरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। परम्परा यह मानती है कि प्रारम्भ के छः प्रकरणों की रचना स्वामी विद्यारण्य ने की है और शेष ६ प्रकरणों की रचना उनके गुरु भारत्ती तीर्थ ने की है। पञ्चदशी के टीकाकार राम कृष्ण ने सप्तम प्रकरण ‘तृप्तिदीप’ को भारती तीर्थ द्वारा रचित माना है। अप्पयदीक्षित ने ‘ध्यानदीप’ को भारतीतीर्थ की रचना कहा है। परन्तु निश्चलदास ने वृत्तिप्रभाकर में स्पष्ट कहा है कि विद्यारण्य प्रथम दश प्रकरणों के तथा भारतीतीर्थ अन्तिम पाँच प्रकरणों के लेखक हैं। सम्प्रति सामान्य रूप से पंचदशी के लेखक स्वामी विद्यारण्य ही माने जाते हैं।
सत्य ज्ञान रूप व्यापक जीवन तत्त्व की बात जब मन और बुद्धि की समझ में आ जाती है और मन की समझ को जब अहंकार अपना लेता है, तब संसार के समस्त जीव और सम्पूर्ण पदार्थ एक तत्त्व बन जाते हैं। ‘परे ऽव्यये सर्व एकी भवन्ति’ इस आभाणक का रहस्य समझ में आने लगता है। परन्तु व्यापक जीवन-तत्त्व की बात बोधगम्य होने में इस तत्त्व की आधारभूत विश्वसृष्टि ही सबसे बड़ा विघ्न है। जिस प्रकार सर्प रस्सी को दीखने नहीं देता और द्रष्टा तथा रस्सी के बीच में आकर खड़ा हो जाता है, उसी प्रकार इस व्यापक ज्ञान रूप जीवन तत्त्व और जीव के बीच आकर खड़ी हुई विश्वसृष्टि ने जीव का सम्पूर्ण ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर जो अतत्त्व अवास्तविक है उसी का दर्शन करा रखा है और तत्त्व की प्रतीति को रोक रखा है। पञ्चदशी में उस यथार्थ तत्व की बाधाओं को दूर करने की विधि को बताते हुए तत्त्व दर्शन की प्रक्रिया का, तत्त्वविवेक नामक प्रथम प्रकरण में वर्णन किया गया है। द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ प्रकरणों मे तत्त्वदर्शन के जो तीन प्रमुख विघ्न हैं उनको ही तत्त्वदर्शन का सहायक बना लेने की विधि का विचार किया गया है।
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