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Paratantra Sadhana Path (परातन्त्र साधना पथ)

60.00

Author Pt. Gopinath Kaviraj
Publisher Manas Granthagar
Language Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 84
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code MG0002
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Description

परातन्त्र साधना पथ (Paratantra Sadhana Path) ज्ञानगंज के सिद्ध योगी श्री विशुद्धानंद परमहंस देव जीव के उपासक हैं। वे विशुद्ध सत्ता के रूप में चैतन्य सत्ता से भी अतीत हैं, जो आलोक एवं अन्धकार दोनों के अतीत उपस्थित होकर आलोक एवं अन्धकार की समष्टि द्वारा जीव को पूर्णत्व प्राप्ति का पथ प्रदर्शन कराने के लिये मृत्युलोक में अवतरित हुये थे। उनकी अवधारणा थी कि मनुष्य देह में जब तक मनुष्यत्त्व की प्राप्ति नहीं होगी, तब तक पूर्ण ब्रह्म अवस्था की प्राप्ति असम्भव है। देवता अथवा ईश्वर की समकक्षता पाना मनुष्य का उद्देश्य नहीं है। बाबा ने नर देह में अवस्थित हो, चिरकाल तक साधना की। उनका लक्ष्य था किस प्रकार नर देह मृत्यु वर्जित होकर, चिदानन्दमय नित्य देह में परिणत हो सके। उन्होंने मनुष्य की साधना की, अतः उनके लिए मनुष्यत्व साध्य था। बाबा जीव के उपासक थे अतएव जीवों का अभाव तथा अतृप्ति से उद्धार करना हो उनका एक मात्र उद्देश्य था और महाप्रलय तक रहेगा।

स्वनामधन्य विश्वविश्रुत मनीषी पं० गोपीनाथ कविराज को बाबा विशुद्धानंद का अन्यतम शिष्यत्व प्राप्त हुआ। बाबा द्वारा प्रतिपादित सेवा और कर्म द्वारा विज्ञान के अन्वेषण कार्य में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। (देखिये ‘योग तन्त्र साधना’ पुस्तक का परिशिष्ट) गहन गम्भीर साधना के फलस्वरूप उनमें उद्भट पाण्डित्य प्रकाशित हुआ। कर्म, ज्ञान और भक्ति की त्रिवेणी का अजस्त्र श्रोत बढ़कर विश्वव्यापी हुआ। उनकी लेखनी को विश्व में व्याप्त लगभग सभी उल्लेखनीय साधना पद्धतियों एवं उनमें निहित सूक्ष्म भावों को प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त है। यह उत्कृष्ट ज्ञान अनुभव सिद्ध था। अतः इसका समन्वयात्मक स्वरूप साधकों का पथ प्रदर्शित करता है।

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