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Parihar Sar Sangrah (परिहार सार संग्रहः)

30.00

Author Pandit Ramdayalu Tripathi
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 1996
ISBN -
Pages 80
Cover Paper Back
Size 12 x 1 x 18 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0182
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Description

परिहार सार संग्रहः (Parihar Sar Sangrah)

गणाधीशं तथा श्रीशं, पार्वत्या सहितंशिवम् ।
भारतीं भारतीशं वा, नौमिसर्वार्थ सिद्धये ॥ १ ॥

गणेश जी को लक्ष्मीपति श्री विष्णु जी को तथा पार्वती जी के सहित श्री शंकर जी को और सरस्वती जी तथा ब्रह्मा जी को सर्वकामनाओं की सिद्धि के लिये नमस्कार करता हूँ ।। १ ।।

ग्रन्थेभ्यः पूर्व वाक्येभ्यो, मुनीनां हृत्य यत्नतः ।
संग्रहं परिहाराणां, कुर्वेहं स स्वभाषया ॥ २ ॥

अनेक ग्रन्थों से तथा प्राचीन मषियों के वाक्यों से यत्न पूर्वक उद्धृत करके स्वभाषा टीका के सहित मैं (रामदयालु त्रिपाठी) परिहारों का संग्रह करता हूँ ॥ २ ॥

तैलाभ्यंगेदोषापवाद माहगणपतिः

तैलाभ्य ङ्गोनदोषाय, प्रत्यहं क्रियतेचयः ।
उत्सवे वात रोगे वा, यंत्र वाचनिकेऽपिवा ॥ ३ ॥
भार्गवेगोमयं भौमे, मृदं दूर्वा वृहस्पतौ ।
रवौ पुष्पं विधायांत, स्तैलाभ्यंगो न दोषकृत् ॥ ४ ॥
मंत्रितं क्वथितं तैलं, सार्षपं पुष्प वासितम् ।
दृव्यान्तर युतं वापि, नैव दुष्येत्कदाचन ॥ ५ ॥

जो मनुष्य प्रतिदिन तैलाभ्यंग करता है तथा उत्सव के विषय में वा वात रोग में वा वाचनिक अर्थात् प्रथम वाक्य और ही निकसै ऐसे तैल में दोष नहीं है जैसे बेला का तेल इसमें प्रथम वाक्य “बेला” है इसी क्रम से जानना ॥ ३ ॥ शुक्रवार को गोबर युक्त भौमवार को मिट्टी युक्त गुरुवार को दूर्वा युक्त रविवार को पुष्प युक्त करके तैल लगावै तो कोई दोष नहीं है ।॥ ४ ॥ अभि मंत्रित व पका हुआ तथा सरसों का तैल वा पुष्प वासित अर्थात् सुगंधित तैल वा औषधि युक्त जो तैल है इन तैलों में कभी दोष नहीं होता ॥ ५ ॥

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