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Raghuvansh Mahakavyam Pancham Sarg (रघुवंशमहाकाव्यम् पञ्चमः सर्गः)

63.00

Author Vidyanand Pal
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2020
ISBN -
Pages 150
Cover Paper Back
Size 12 x 3 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0113
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Description

रघुवंशमहाकाव्यम् पञ्चमः सर्गः (Raghuvansh Mahakavyam Pancham Sarg) कालिदास की कृतियों के क्रम में ‘रघुवंश महाकाव्य’ का ‘तीसरा स्थान’ है। प्रथम दो कृतियां हैं- ‘कुमारसंभव’ और ‘मेघदूत’। ‘रघुवंश’ कालिदास रचित महाकाव्य है। इसमें ‘उन्नीस सर्ग’ हैं, जिनमें रघुकुल के इतिहास का वर्णन किया गया है। महाराज रघु के प्रताप से उनके कुल का नाम ‘रघुकुल’ पड़ा। रघुकुल में ही राम का जन्म हुआ था। रघुवंश के अनुसार दिलीप रघुकुल के प्रथम राजा थे, जिनके पुत्र रघु द्वितीय थे। उन्नीस सर्गों में कालिदास ने राजा दिलीप, उनके पुत्र रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ, दशरथ के पुत्र राम तथा राम के पुत्र लव और कुश के चरित्रों का वर्णन किया है।

‘रघुवंश’ कालिदास की सर्वाधिक प्रौढ़ काव्यकृति है। ‘कुमारसम्भव’ की तुलना में इसका फलक विस्तीर्णतर है। अनेक चरित्रों और नाना घटना प्रसंगों की वज्रसमुत्कीर्ण मणियों को कवि ने इसमें एक सूत्र में पिरों दिया है और उनके माध्यम से राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं, आस्थाओं और संस्कृति की महतनीय उपलब्धियों की तथा समसामयिक सामंतीय समाज के अध:पतन की महागाथा उज्ज्वल पदावली में प्रस्तुत कर दी है। दिलीप और रघु जैसे उदात्त चरित्रों के आख्यान से आरम्भ कर राम के चरित्र को भी रघुवंश प्रस्तुत करता है और ‘अग्निवर्ण’ जैसे विलासी राजा को भी।

पञ्चम सर्ग :- पञ्चम सर्ग रघु की दानशीलता से परिपूर्ण है, उनका राजकोष असीमित दानवृत्ति से रिक्त हो चुका है, इसी समय कौत्स नामक एक ब्रह्मचारी, गुरु दक्षिणा हेतु चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की याचना ले सभा में उपस्थित होता है। धनवेद कुबेर रघु के आक्रमण के भय से स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करते हैं, ब्रह्मचारी कौत्स अभीष्ट मात्रा में स्वर्ण मुद्राएं लेकर राजा को पुत्र-प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं।

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