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Rudra Adhyay (रुद्राध्यायः)

50.00

Author Narayana Ram Acharya
Publisher Chaukhamba Surbharti Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2002
ISBN -
Pages 26
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0755
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Description

रुद्राध्यायः (Rudra Adhyay) रुद्राष्टाध्यायी, या रुद्र की स्तुति में आठ अध्याय, शुक्ल यजुर्वेद से निकले हैं। यह भगवान शिव का सबसे प्रशंसित और प्रसिद्ध स्तोत्र है। रुद्राष्टाध्यायी में कुल दस अध्याय हैं, लेकिन पहले आठ अध्यायों को ही मुख्य माना जाता है।

रुद्राष्टाध्यायी के पहले अध्याय में ‘शिवसंकल्पमस्तु’ आदि मंत्रों से गणेश का स्तवन किया गया है। दूसरे अध्याय पुरुष सूक्त में नारायण ‘विष्णु’ का स्तवन है। तीसरे अध्याय में देवराज ‘इंद्र’ और चौथे अध्याय में भगवान ‘सूर्य’ का स्तवन है। रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करने से जन्मजन्मांतरों के पाप नष्ट हो जाते हैं। वेद में भगवान शिव को ‘रुद्र’ कहा गया है क्योंकि वे दु:ख को नष्ट कर देते हैं।

रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का षडंग रूपक पाठ कहलाता है। षडंग पाठ में खास बात यह है कि इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवें अध्याय की आवृत्ति नहीं होती। कर्मकांड की भाषा में इसे ही नमक-चमक से अभिषेक करना कहा जाता है। रुद्राध्याय की ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते हैं। वायुपुराण के अनुसार जो रुद्राष्टाध्यायी के नमक (पंचम अध्याय) और चमक (अष्टम अध्याय) तथा पुरुष सूक्त का प्रतिदिन तीन बार पाठ करता है वह ब्रह्म लोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

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