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Rudra Swahakar Paddhati (रुद्रस्वाहाकारपद्धतिः)

10.00

Author Pt. Shri Gopal Chandra Mishra
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Sanskrit
Edition -
ISBN -
Pages 12
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0458
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Description

रुद्रस्वाहाकारपद्धतिः (Rudra Swahakar Paddhati) वेदभाष्यकारों नें ‘रुद्र’ शब्द का ‘रुत् दुःखं द्रावयतीति रुद्रः’ अर्थात् भगवान् आशुतोष शङ्कर दुःख नाश करने के कारण ‘रुद्र’ कहे जाते हैं, यह विग्रह बतलाया है। इनकी आराधना के लिए जो प्रसिद्ध वैदिकमन्त्र-समुदाय है उसे ‘रुद्राध्याय’ कहते हैं। शास्त्रकारों में मन्त्रात्मक रुद्राध्याय को एक पुरुष मानकर उसके मन्त्रात्मक ही अङ्ग बतलाए हैं। जैसे (१) ‘शिवसङ्कल्प‘-यज्जामतः० इत्यादि (शुक्लयजुः संहिता ३४/१-६) छै मन्त्र-हृदय है। ‘पुरुषसूक्त’-सहस्रशीर्षा० इत्यादि (सं० ३१११-१६) सोलह मन्त्र-शिर है। उत्तरनारायण-अद्भचः सम्भृतः इत्यादि (सं० ३१११७-२२) छै मन्त्र- शिखा है। ‘अप्रतिरथ’-आशुःशिशान० इत्यादि ( सं० १७/३३-४९) बारह मन्त्र-कवच है। ‘सौर अनुवाक’ -विभ्रा बृहत्० इत्यादि ( सं० ३३१३०-४१)।

(२) सतरह मन्त्र-नेत्र हैं। इत्यादि। अङ्गों सहित रुद्राध्याय के एक पाठ को ‘रुद्र’ कहते हैं।

(३) रुद्र की एका– दश्च आवृत्ति करने से एक ‘रुद्री’ होती है। ‘रुद्री’ में अङ्गमन्त्रों का पाठ दो बार होता है। अङ्गमन्त्रों का एक बार पाठ करने का भी शास्त्र में पक्ष है। प्रधान रुद्राध्यायका ११ बार पाठ होता है। रुद्री की ११ आवृत्तिसे ‘लघुरुद्र’, लघुरुद्र की ११ आवृत्ति से ‘महारुद्र’, एवं महारुद्र की ११ आवृत्ति से ‘अतिरुद्र’ होता है।

(१) शिवसङ्कल्पं हृदयं सुतं स्यात्पौरुषं शिरः । प्राहुर्नारायणं चैव थिखां तस्योत्त राभिधाम् । आशुः शिशानः कवचं नेत्रं वित्रा बृहत्स्मृतम् । शतरुद्रीयमस्त्रं स्यात् षडङ्गक्रम ईरितः । पूर्वमंगानि संजप्य रुद्राध्यायं ततो जपेत् । – विधानपारिजात ।

(२) अनुष्ठानकाल में ‘तंप्रत्नथायंवेनश्चित्रं देवानाम्’ इस में उपदिष्ट तीनों मन्त्रों का पाठ किया जाता है अत एव ‘सौरानुवाक’ सतरह मन्त्रका है।

(३) रुद्राः पश्वविचाः प्रोक्ता देशिकैरुत्तरोत्तरम् । साङ्गस्स्वायो रूपकाख्यः सशीषों रुद्र उच्यते । एकादश गुणैस्तद्वदुद्रीसंज्ञो द्वितीयकः । एकादश भिरेताभिस्तृतीयो लघुरुद्रकः । लध्वेकादशभिः प्रोको महारुद्रश्चतुर्थकः । पञ्चमः स्यान्महारुद्रैरेकादशभिरन्तिमः । अतिरुद्रः समाख्यातः सर्वेभ्यो ब्युत्तमोत्तमः । रुद्रकल्पद्रुम ।

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