Sahitya Darpan (साहित्यदर्पणः)
Original price was: ₹750.00.₹637.00Current price is: ₹637.00.
Author | Pt. Hare Kant Mishr |
Publisher | Chaukhambha Orientalia |
Language | Sanskrit text with Hindi Translation |
Edition | 2017 |
ISBN | - |
Pages | 1488 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 5 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CO0400 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
साहित्यदर्पणः (Sahitya Darpan) ‘काव्य’ शब्द संस्कृत भाषा में प्राचीन है जिसे ‘कवि के कर्म’ के रूप में जाना जाता है- ‘कवेः कर्म काव्यम्’ (कविण्यत्) यह ‘कवि’ शब्द ‘कु’ अथवा ‘कव’ धातु (भ्वादि आत्मनेपद-कवतेः) से बना है जिसका अर्थ है-ध्वनि करना, विवरण देना, चित्रण करना इत्यादि। तदनुसार शब्दों के द्वारा किसी विषय का आकर्षक विवरण देना या चित्रण करना काव्य है। कविगण रम्य या हृदयावर्जक रचना की समीक्षा की पद्धति को काव्यशास्त्र साहित्यशास्त्र या अलङ्कारशास्त्र कहते हैं।
काव्य का यथार्थ लक्षण करके अन्य साहित्य-विद्याओं से पार्थक्य दिखाना बहुत कठिन है। गद्य में रचित ग्रन्थ काव्य हो सकता है या नहीं इस प्रश्न को छोड़ दिया जाय तो वास्तविक कविता के लिये इन तीन गुणों की आवश्यकता होती है- विशिष्ट प्रकार की भाषासारिणी, इसकी विषय-सामग्री और विषय प्रतिपादन की प्रवृत्ति। इस दृष्टि से आयों का आदि ग्रन्थ यद्यपि मुख्यरूप से धर्मग्रन्थ है तो भी उनमें अच्छे काव्य के अनेक गुण हैं। विशेषतः उषा विषयक सूक्तों में सरस काव्य के अनेक उदाहरण दिखाये जा सकते हैं-
“अभ्रातेव पुंस एति प्रतीची गर्तारुगिव सनये घनानाम्।
जायेवपत्य उशती भुवासा उषा ह-सेव नि-रिणीते अप्सः ।।” (ऋग्वेद 1.124.7) इस मंत्र में चार उपमाएँ हैं।
काव्य एक कला है। इसका प्रत्यक्ष प्रयोजन और उद्देश्य सौन्दर्यानन्द प्रदान करना है। संस्कृत आचार्यों ने आरम्भ में ही इस प्रयोजन को स्वीकार किया है। नाट्यशास्त्र के अनुसार भरत ने नाट्यकला का प्रचार सब लोगों को आनन्द प्रदान करने के साधन-रूप में किया है।
“क्रीडनीयकमिच्छामो दृश्यं श्रव्यं च यद् भवेत्”
और- “वेदविद्येतिहासानामाख्यानपरिकल्पनम्।
विनोदजनन लोके नाद्यमेतद् भविष्यति।।” (नाट्य. 1.11 और 116-7)
सकलप्रयोजनमौलिभूतं समनन्तरमेव रसास्वादनसमुद्भूतं विगलितवेद्यान्तरमानन्दम्। (काव्य, प्रकाश)
काव्यशास्त्र के ग्रन्थों में इसके अतिरिक्त भी अनेक काव्य प्रयोजनों का निरूपण किया गया है। इनमें कतिपय का सम्बन्ध प्रत्यक्ष कवि से है तो कतिपय का पाठक से। पाठक से सम्बन्ध प्रयोजन है- (1) आनन्द शान्ति, (2) धर्म, नीति और अध्यात्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त होना, (3) कला और व्यवहार ज्ञान में कुशलता। कवि के लिए काव्य, यश और धन भी प्रदान करता है। नाट्यशास्त्र के अनुसार दुःखी और चिन्ताग्रस्त व्यक्तियों के मन को नाट्य विश्राम और शान्ति प्रदान करता है।
दुःखार्तानां श्रमार्तानां शोकार्त्तानां तपस्विनाम्।
विश्रामजननं लोके नाट्यमेतद् भविष्यति।।
भामह के मत में-
धर्मार्थ काममोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च।
प्रीतिं करोति कीर्ति च साधुकाव्यनिबन्धनम्।। (सार. क. 1-2)
निर्दोषं गुणवत्काव्यमलङ्कारैरलङ्कृतम्।
रसान्वितं कविः कुर्वन् कीर्ति प्रीतिं च विन्दति ।।
इसके अतिरिक्त भी अनेकों कवियों ने काव्यप्रयोजनों का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है। अधिकांश साहित्यशास्त्र के ग्रन्थकारों ने प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास इन तीनों को काव्योत्पत्ति के लिए आवश्यक माना है।
नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुनिर्मलम्।
अमन्दश्चात्रि योगोऽस्याः कारणं काव्यसंपदः ॥ (काव्यादर्श 1.103)
शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात्।
काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे ।। (काव्य प्र. 1.8)
कतिपय अन्यग्रन्थकारों के मत में प्रतिभा ही श्रेष्ठ कवि का एकमात्र गुण है। राजशेखर ने कहा है-“सा (शक्तिः) केवलं काव्ये हुतुरिति यायावरीय:”। (1.11)
“प्रतिभैव च कवीनां काव्यकरणकारणम्।
व्युत्पत्यभ्यासौ तस्या एव संस्कारकारकौ न तु काव्यहेतू”। (वाग्भट्ट का अलङ्कार तिलक)
“तस्य च कारणं कविगता केवला प्रतिभा” ( रसगङ्गाधर)
कविता ऐसी शक्ति है जिससे कवि को काव्यविषय रमणीयता से परिपूर्ण दिखायी देता है और वह अपने पाठकों के लिए उपयुक्त भाषा में अनुभूत सौन्दर्य का प्रत्यक्ष चित्र प्रस्तुत कर देता है। इस शक्ति से वह पाठकों के हृदय में सुप्त अनुभूतियों को पुनः जागृत करता है। साथ ही सामान्य मनुष्य द्वारा पहले कभी भी अनुभव न किए हुए तथा नित्य नवीन प्रतीत होने वाले रमणीय प्रसङ्गों और वस्तुओं को वह पाठकों के समक्ष चित्रवत् प्रस्तुत कर देता है। कवि एक प्रकार का सिद्ध पुरुष और भविष्यद्रष्टा होता है। वह अपनी अद्भुत दृष्टि से अदृष्टपूर्व और रमणीय वस्तुओं को तो देखता ही है, साथ ही निजी अनुभूत रमणीय वस्तुओं को भाषा के माध्यम से वर्णन करके अन्य सामान्य लोगों के लिए भी ग्राह्य बना देता है। प्रतिभा की निम्न परिभाषाओं से यह बात स्पष्ट हो जाएगी।
“प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता…….
वर्णनानिपुणः कविः”। (भट्ट तोते काव्यकौतुक)
“कवित्वबीजं प्रतिभानम्” (वामन वृत्ति 1, 3, 16)
Reviews
There are no reviews yet.