Sanatan Sanskar Vidhi (सनातन संस्कार विधि)
₹212.00
Author | Acharya Ganga Prasad Shastri |
Publisher | Ranjan Publication |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2019 |
ISBN | - |
Pages | 320 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RP0074 |
Other | Dispatch In 1-3 days |
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सनातन संस्कार विधि (Sanatan Sanskar Vidhi) भारतीय शास्त्रकारों के अनुसार मानव-जीवन का एक निश्चित ध्येय और उसकी प्राप्ति के अनेक साधन हैं। ‘संस्कार’ भी इन्हीं में से एक साधन है। प्रत्येक मनुष्य जन्म के साथ कुछ लेकर उत्पन्न होता है; नवजात शिशु का मस्तिष्क ऐसी कोरी पट्टी नहीं है, जिस पर सर्वथा नूतन लेख लिखा जाना हो; इस पर पूर्वजन्मों के विविध संस्कार लिखे रहते हैं। फिर, इस पर नये नये संस्कार भी पड़ते रहते हैं जो पुराने संस्कारों को प्रभावित कर उनमें परिवर्तन, परिवर्धन अथवा उनका उन्मूलन भी करते रहते हैं। प्रतिकूल संस्कारों का विनाश एवं अनुकूल संस्कारों का निर्माण ही मानव-साधक का उचित प्रयास है।
‘संस्कार’ शब्द का अर्थ
‘संस्कार’ के महत्त्व को समझने के लिए उनका अभिप्राय भी समझ लेना आवश्यक है। संस्कृत साहित्य में, शिक्षण, चमक सजावट, आभूषण छाप, आकार, सांचा, क्रिया, प्रभाव-स्मृति पावक कर्म, विचार, धारणा, पुण्य’ आदि अनेक अर्थों में संस्कार शब्द का प्रयोग हुआ है। देखा जाय तो इनका भावार्थ लगभग एक सा ही है। महर्षि पाणिनि के अनुसार इस शब्द के तीन अर्थ हैं- (१) उत्कर्ष करने वाला (उत्कर्षसाधनं संस्कारः) (२) समवाय अथवा संघात और (३) आभूषण । दर्शन-ग्रंथों में ‘भोग्य पदार्थों की अनुभूति की छाप’ को संस्कार माना है। मनुष्य के अव्यक्त मन पर समय समय पर जो अनुभवों की छाप पड़ती रहती है, समय पाकर वह उद्भूत होती है। यही छाप ‘वासना’ कहलाती है।
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