Sandhya Vigyan (सन्ध्या विज्ञान)
₹127.00
Author | Dr. Ramamilan Mishra |
Publisher | Shree Vedang Sansthan Prayagraj |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st Edition |
ISBN | 978-81-958056-0-0 |
Pages | 200 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SVS0007 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सन्ध्या विज्ञान (Sandhya Vigyan)
कार्तज्ञं परब्रह्मणीश जगतः निगृह्यगोचाञ्चलम् ।
सायंमध्यप्रभातवाऽथद्वितयं सन्ध्यामुपासीकृतम् ।।
धर्मे कर्मणि धर्मकर्मनिलये दत्तामतिं व्युत्क्रमे ।
नत्वा रच्मि समष्टि धी सुकृतिना सन्ध्या विधिं शंकृते।।
सम्पूर्ण संसार के स्वामी परब्रह्म परमात्मा का कृतज्ञ हूँ जिसने इन्द्रियों की चञ्चलता का निग्रहण करके सायं मध्याह्न तथा प्रातः अथवा प्रातः सायंकाल की द्विकाल या त्रिकाल सन्ध्या करने की प्रवृत्ति बनायी तथा सभी क्रियमाण कर्मों को धर्म में तथा धर्मों को कर्म में स्थापित करने की मति व्युत्क्रम से प्रदान की, उन परमेश्वर को अपनी सम्पूर्ण पुण्य युक्त समस्त बुद्धि से नमस्कार करके द्विजातियों के कल्याणार्थ सन्ध्याविधि की रचना करता हूँ।
सागर का सलिल ही सरिताओं में प्रवाहित होता हुआ पुनः सागर में ही समाहित हो जाता है, इसी क्रम में ऋषि ज्ञान रूपी सागर से उपयोगी ज्ञान- जल कण को एकत्रित करके यह सन्ध्या विज्ञान नामक पुस्तक आपकी उन सम्पूर्ण तृष्णा एवं पिपासाओं को शांत करे, जो कि सन्ध्योपासन के समय प्रायः उग्र हो जाया करती हैं।
सम्वत् २०६४ में सन्ध्या विज्ञान को प्रकाशित किया गया था, जिसके प्रचार की ह्रासमान गति होने से मुद्रित प्रतियाँ शीघ्र जिज्ञासुओं तक नहीं पहुँच सकीं जैसे ही प्राप्त हुयीं इसकी मांग भी बढ़ने लगी, अतः इतने दिनों के अन्तराल के पश्चात् पुनः सन्ध्या विज्ञान को परिष्कृत करके प्रकाशित करने का संयोग बन सका है, प्रस्तुत संस्करण में पूर्व संस्करण को और परिष्कृत करते हुए शुद्धतम करने का प्रयास किया गया है, साथ ही ऋग्वेद, सामवेद सहित तान्त्रिक, पौराणिक, यतिसन्ध्या तथा तुरीय सन्ध्योपासन विधि का भी समावेश कर दिया गया है, जिससे सन्ध्योपासन सम्बन्धित सभी की जिज्ञासा की पूर्ति मात्र इस पुस्तक से हो सके। चारों वेदों की सन्ध्योपासन विधि, सन्ध्याविज्ञान ग्रंथ के द्वितीय संस्करण के प्रकाशन में श्रीबालेन्दु पाण्डेय जी, जगदीशपुरम्, बेलवाजंगल, पडरौना, कुशीनगर (उ.प्र.) ने वेदों की सन्ध्योपासन विधि के समायोजन में विषयवस्तु को उपलब्ध कराते हुए ग्रन्थ सम्बन्धित अनेक परामर्श प्रदान किए, तदर्थ श्रीपाण्डेय जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
पूज्य गुरुदेव डॉ. बाबूलाल मिश्र सहित सभी पूज्य गुरुजनों का सतत् आशीर्वाद बना रहता है जो ग्रन्थ लेखन जैसे महनीय कार्य में ऊर्जा सदृश है अतः सभी गुरुजनों के चरणों में साष्टाङ्ग प्रणाम समर्पित करता हूँ। साथ ही सभी विद्वान् पण्डितगण मित्रों तथा सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता समर्पित करते हुए टंकण कार्य में सहयोगी विनोद द्विवेदी जी का तथा कृष्णा कम्प्यूटर संस्थान के अध्यक्ष श्रीब्रह्मानन्द मिश्र जी का हृदय से आभार, जिनके अथक परिश्रम से पुस्तक अपने स्वरूप को प्राप्त हुई। अन्य येन-केन प्राकारेण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष में जिनका भी मार्गदर्शन सहयोग प्राप्त हुआ उन सबके प्रति समादर पूर्वक कृतज्ञता समर्पित करता हूँ।
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