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Sankshipt Padhartha Vijnana (संक्षिप्त पदार्थ विज्ञान)

115.00

Author Acharya Jaymini Panday
Publisher Chaukhambha Visvabharati
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2018
ISBN 978-93-81301-40-1
Pages 150
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CVB0035
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Description

संक्षिप्त पदार्थ विज्ञान (Sankshipt Padhartha Vijnana) यह पुस्तक दर्शन, सांख्य योग एवं न्याय वैशोषिक, वेदान्त इत्यादि अनेक दर्शनों पर आधारित है। दर्शन शब्द देखेने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और यह दर्शन स्थूल (पाञ्चभौतिक) दृष्टि से सम्भव नहीं है अतः इसके लिए योग दर्शन का सहारा लेकर ही दर्शन के क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है। योग की प्रक्रिया में चित्त की वृत्तियों का निरोध योग का प्रथम सोपान है। अतः प्रथम सोपान के बिना व्यक्ति ऊपर नहीं चढ़ सकता; ऐसी स्थिति में छात्रों को दार्शनिक विषय में प्रेरित करना दूरूह कार्य है। गीता में कहा है-

“चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथी बलव‌दृढं।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्” ।।

इस आधार पर लड़कों का मन पदार्थ विज्ञान जैसे दार्शनिक विषय में कैसे प्रवृत्त हो सकता है; अतः मैं अपने अध्ययन एवं अध्यापन काल से ही इस विषय में विचार करते हुए सरलतम ढंग से इस पुस्तक की रचना करने का साहस जुटा पाया। यहाँ महाकवि कालीदास द्वारा रचित

“क्य सूर्य प्रभवो वंशः क्व चाल्य विषया मतिः।”

“कहाँ यह विशाल दर्शन कहाँ अल्प बुद्धि वाला मैं” फिर भी मोहवश मैं दर्शन रूपी विशाल सागर को तैरने की इच्छा से प्रेरित होकर “बालानां अवबोधाय बुधानां बुद्धि वृद्धये” इस पुस्तक की रचना कर रहा हूँ।

इस वैज्ञानिक चकाचौंध में “प्रत्यक्षमेकं चार्वाकाः” के आधार पर छात्रों को प्रत्येक वस्तु प्रत्यक्ष होनी चाहिए। प्रत्यक्ष के बिना वे कुछ मानने को तैयार ही नहीं है। प्रत्यक्ष तो यहाँ भी होता है; परन्तु उसके लिए ज्ञानचक्षु की आवश्यकता है। जैसा शास्त्रों में लिखा है “महर्षयस्ते ददृशुर्यथावत् ज्ञान चक्षुसा” अतः ज्ञानचक्षु से इनका अवलोकन किया जाता है; अतः छात्रों को ज्ञान प्राप्ति के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना चाहिए। इस पुस्तक की रचना करते हुए अत्यधिक सरलतम बनाने का प्रयास किया गया है।

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