Sanskrit Kavya Geet Vaibhavam (संस्कृतकाव्यगीतवैभवम्)
₹255.00
Author | Dr. Dharm Datt Chaturvedi |
Publisher | Sharda Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition |
ISBN | 978-93-81999-49-3 |
Pages | 245 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSS0104 |
Other | Sanskrit Kavya Geet Vaibhavam |
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संस्कृतकाव्यगीतवैभवम् (Sanskrit Kavya Geet Vaibhavam) समसामयिक घटनाओं एवं विविध विषयों पर आधारित मेरे द्वारा रचित संस्कृत कविताओं का यह मौलिक काव्य ग्रन्थ है। इसके पाँच प्रकल्पों में १३२२ पद्य (पृथक्-पृथक् छन्दोबद्ध) तथा मुक्तक सरस गीत निबद्ध हैं, जिनका संक्षिप्त हेतु व आशय हिन्दी में भी दिया गया है। प्रथम प्रकल्प में वर्तमान कुत्सित राजनीति, कृषि एवं किसानों की समस्या, न्यायालय, पुत्रमोह, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, परीक्षा-प्रणाली, कर्ममीमांसा, रामायण-महाभारतकालीन कुछ कुत्सित प्रवृत्तियों के वर्तमान सन्दर्भ, हास्य-कणिका, होली तथा गंगाजल शुद्धिकरण इत्यादि विषयों पर कटाक्षपूर्ण व्यङ्ग्योक्तियों के द्वारा तीव्र प्रहार कर वर्तमान स्वस्थ भारतीय सामाजिक परिवेश की अभिव्यञ्जना की गई है। इसी के साथ संस्कृत भाषा की विशेषताएं, महत्त्व, उसकी दयनीय दशा, बुन्देलखण्ड की विशेषताएं, बुद्ध, आदिशङ्कर, नादियाबाबा तथा शङ्कराचार्य की महिमा पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय प्रकल्प में वौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा, कर्मापा, अखण्डानन्द सरस्वती इत्यादि अनेक विशिष्ट विभूतियों के योगदान पर एवं कुछ दिवङ्गत महान् संस्कृत-साधकों, वर्तमान उल्लेखनीय कतिपय ३२ संस्कृत विद्वानों के रचनात्मक अवदान पर प्राचीन छन्दों में रचनाएं अनुस्यूत हैं।
तृतीय प्रकल्प में मुक्तक सरस गीतों के अन्तर्गत कजरी, कव्वाली, विश्वसंस्कृत मङ्गल, मुहनोचवाँ, अजमल कशाब, निर्वाचन, उत्कोच, देशभक्ति, राष्ट्रिय समस्या, अन्याय, अपसंस्कृति, संस्कृत विद्यालयों की दशा, काशी लोकसभा निर्वाचन (२०१४) आदि विषयों के साथ कुछ संस्कृत शिक्षा-संस्थाओं पर समालोचनात्मक विवेचन से समाज को नयी दिशा मिलेगी और गीतों की विविध लयों में प्रस्तुति से संस्कृत महिमा का मंडन होगा, समाज हितकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलेगा, सामाजिक विडम्बनाएं व स्वार्थी प्रवृत्तियाँ ध्वस्त होंगी और राष्ट्रिय एकता का मार्ग प्रशस्त होगा। चतुर्थ प्रकल्प में चन्देलेकालीन ध्वस्त शिव मन्दिर की भूमि पर अपनी जन्मभूमि में स्वनिर्मित विशाल द्वादशज्योतिर्लिङ्ग मन्दिर की स्थापना व कार्यक्रम, माता-पिता के साथ चतुर्धाम तीर्थयात्रा व अपने संस्कृत परिवार के सदस्यों पर प्राचीन छन्दों में रचनाएं निबद्ध हैं। इसमें दो शतक भी द्रष्टव्य है। पंचम में अपनी विभागाध्यक्षता में सम्पादित विश्वविद्यालयीय संस्कृत कार्यक्रमों व अभिनीत संस्कृत नाटकों का विवरण तथा अन्त में उनसे सम्बद्ध कार्यक्रमों के कुछ मनोहारी चित्र द्रष्टव्य है।
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