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Sanskrit Subhashit Ratnakar (संस्कृत सुभाषित रत्नाकर)

123.00

Author Pt. Dwarkaprashad Mishra Shastri
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2013
ISBN 81-7080-199-0
Pages 192
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0730
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Description

संस्कृत सुभाषित रत्नाकर (Sanskrit Subhashit Ratnakar) प्रस्तुत ‘संस्कृत सुभाषित रत्नाकर’ तदनुसार संग्रहीत हिन्दी में अनूदित और सम्पादित पुस्तक है। इसमें विविध विषयों पर संस्कृत के पूर्ण श्लोकों का संकलन करके दिया गया है। इसके अतिरिक्त जनसमुदाय में, गोष्ठियों में, सभाओं में और राजदरबारों में सभ्य लोगों, विद्वानों और संस्कृतज्ञों द्वारा समयोचित संस्कृत सुभाषित पद्यांशों का भी संग्रह अकारादि वर्णक्रम में किया गया है। वे सुभाषित अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। जैसे विनाशकाले विपरीतबुद्धिः, आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्, बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः, परोपकाराय सतां विभूतयः, उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः इत्यादि।

सुभाषितों के संग्रह में मेरी तो रुचि छात्र-जीवन से ही रही है। मेरे पास सुभाषितों का अच्छा संग्रह है। उस अपने संग्रह से तथा सुभाषित रत्नभाण्डागारम्, चाणक्य नीति, विदुरनीति, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा प्रसिद्ध कवियों के काव्यों से भी इस पुस्तक में सुभाषितों के श्लोकों का संग्रह किया गया है। संस्कृत के सुभाषितों के अनेक प्राचीन संग्रह भी हैं। जैसे कवीन्द्रवचनसमुच्चय, सुभाषितरत्नकोष, सूक्तिमुक्तावली, सुभाषितावलिः, सदुक्तिकर्णामृत, शार्ङ्गधरपद्धति, संस्कृत लोकोक्ति संग्रह आदि। प्राकृत भाषा, अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय भाषाओं में भी सुभाषितों के संग्रह उपलब्ध हैं। लोकोक्ति (लोक कल्याण के लिए युक्ति) सूक्ति (सुष्ठु उक्ति) और सुभाषित ये लगभग समान अर्थबोधक हैं। उनमें से सुभाषित सब से अधिक प्रचलित अद्यतन मान्य शब्द है। इस पुस्तक में पृष्ठों की संख्या सीमित होने के कारण बहुत से महत्त्वपूर्ण सुभाषितों को स्थान नहीं मिल सका है।

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