Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 6 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-छः नाट्य खण्ड)
₹630.00
Author | Acharya Baldev Upadhyaya |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1st edition, 2019 |
ISBN | - |
Pages | 568 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 3 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0006 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-छः नाट्य खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 6) “संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास” स्वर्गीय आचार्य महामहोपाध्याय पण्डित बलदेव उपाध्याय की महती योजना रही है। आचार्य उपाध्याय जी ने सम्पूर्ण संस्कृत वाङ्मय को क्रमबद्ध रूप में भारतीय दृष्टि से पुनः प्रस्तुत करने के उद्देश्य से एक समीक्षात्मक इतिहास के लेखन की परिकल्पना की थी। इस योजना के पष्ठ खण्ड के रूप में “संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास नाट्य षष्ठ खण्ड” के सम्पादन का भार उन्होंने मुझे सौंपने की कृपा की। यह कार्य उन्होंने लगभग तीस वर्ष पहले मुझे दिया था। इस खण्ड की सम्पूर्ण परिकल्पना और इसमें लेखन करने वाले विद्वानों का निर्णय भी उन्हीं के सन्निधि में सम्पन्न हुआ था। विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग निर्धारित विषयों पर लिखना आरम्भ किया। इस बीच महामहोपाध्याय पं० उपाध्याय जी दिवंगत हो गये। अब प्रधान सम्पादक का भार आचार्य श्रीनिवास रथ पर आया। प्रोफेसर रथ ने प्रधान सम्पादन के साथ-साथ भास और कालिदास पर स्वयं लिखने की स्वीकृति दी थी, किन्तु व्यस्ततावश उनके द्वारा यह कार्य सम्पन्न नहीं हो पाया और वे दिवंगत हो गये। अब यह कार्य पूरा करने के लिए भास पर लेखन के लिए आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी से मैंने निवेदन किया और उन्होंने कृपापूर्वक अपने लिए निर्धारित कई अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों के अतिरिक्त भास पर भी लेखन सम्पन्न किया।
महाकवि कालिदास पर लिखने के लिए प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा से अकादमी की ओर से मैंने अनुरोध किया और उन्होंने उदारतापूर्वक अपनी स्वीकृति दी और यथासमय अपना निबन्ध पूरा कर प्रस्तुत कर दिया। अभी भी महाकवि भवभूति पर व्यवस्थित लेखन के लिए विद्वान् की आवश्यकता थी और इसके लिए आचार्य मिथिला प्रसाद त्रिपाठी से अनुरोध किया गया। उन्होंने भी अपना निबन्ध प्रस्तुत कर दिया। एक अन्य विद्वान् भास्कराचार्य त्रिपाठी को भवभूति पर लिखने को कहा गया था परन्तु उनका असमय निधन हो गया। अन्य अनेक विद्वानों ने अपना बहुमूल्य योगदान संस्कृत नाट्य के इस खण्ड को पूर्ण करने में दिया है। मैं आचार्य प्रोफेसर राधा वल्लभ त्रिपाठी, प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी एवं प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा के साथ-साथ इस खण्ड में लिखने वाले सभी विद्वानों के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
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