Sanskrit Vyakaran Evam Laghu Siddhant Kaumudi (संस्कृत व्याकरण एवं लघुसिद्धान्त कौमुदि)
₹245.00
Author | Dr. Kapildev Dwivedi |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 11th edition, 2020 |
ISBN | 978-93-5146-084-8 |
Pages | 454 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0015 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत व्याकरण एवं लघुसिद्धान्त कौमुदि (Sanskrit Vyakaran Evam Laghu Siddhant Kaumudi) बहुत समय से संस्कृत व्याकरण की ऐसी पुस्तक की आवश्यकता अनुभव को जा रही थी, जो भारत के सभी विश्वविद्यालयों की बी० ए० और एम० ए० (संस्कृत) कक्षाओं के छात्रों की व्याकरण-सम्बन्धी आवश्यकता को शत-प्रतिशत पूर्ण कर सके। साथ ही उसकी लेखन-शैली ऐसी हो, जो संस्कृत व्याकरण को ‘व्याकरणं व्याधिकरणम्’ दुःखदायी न बनाकर अत्यन्त सरल और सुबोध ढंग से प्रस्तुत करे। यह ग्रन्थ उसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए * लिखा गया है। प्रयत्न किया गया है कि पुस्तक में कहीं पर भी कोई दुरूहता न आने पावे। छात्रों की प्रत्येक कठिनाई का उसमें यथास्थान निराकरण होता जाए। इस ग्रन्थ में निम्नलिखित विषयों का समावेश किया गया है-
(१) भूमिका – भूमिका में व्याकरणशास्त्र के उद्भव और विकास का इतिहास विस्तार से दिया गया है। पाणिनि के पूर्ववर्ती आचार्यों, आचार्य पाणिनि तथा उत्तर-पाणिनि वैयाकरणों का जीवन-चरित्र, समय तथा रचनाओं आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। संक्षेप के साथ यह सर्वत्र ध्यान रखा गया है कि कोई आवश्यक विवरण छूटने न पावे।
(२) लघुसिद्धान्तकौमुदी – सम्पूर्ण लघुकौमुदी पूर्ण विवरण और व्याख्या के साथ दी गई है। अब तक उपलब्ध सभी टीकाओं, भाष्य और व्याख्याओं का इसमें उपयोग किया गया है। छात्रों की सुविधा के लिए अष्टाध्यायी के सूत्र १४ प्वाइंट काले में दिए गए हैं। लघुकौमुदी के सूत्रों की संस्कृत में दी गई वृत्ति का प्रायः विशेष उपयोग नहीं होता है, तथापि उसे दिया गया है। सूत्रों का अर्थ सरल हिन्दी में दिया गया है। शब्दरूपों, धातुरूपों आदि को समझाने के लिए नवीन पद्धति अपनाई गई है। प्रत्येक प्रकरण के प्रारम्भ में कुछ आवश्यक निर्देश दिए गए हैं, उन्हें सावधानी से समझ लेना चाहिए। आवश्यक निर्देशों में उस प्रकरण से संबद्ध सभी आवश्यक बातें संक्षेप में, किन्तु बहुत स्पष्ट रूप से, समझा दी गई हैं। यदि इन आवश्यक निर्देशों को सावधानी से समझ लिया जाएगा तो उस प्रकरण को समझने में कोई कठिनाई न होगी। आवश्यक निर्देशों में उस प्रकरण से संबद्ध पारिभाषिक शब्द आदि भी वहाँ पर सावधानी से समझा दिए गए हैं। शब्दरूपों और धातुरूपों में सूचना के द्वारा यह स्पष्ट रूप से समझाया गया है कि अन्य शब्दों या धातुओं से उस शब्द या धातु में मुख्य रूप से क्या अन्तर होते हैं। भ्वादिगण के प्रारम्भ में धातुरूप सिद्ध करने के लिए ३० पृष्ठों में सभी आवश्यक बातें दे दी गई हैं।
(३) सिद्धान्तकौमुदी – कारक-प्रकरण – लघुकौमुदी में कारक प्रकरण बहुत अधिक संक्षिप्त है, अतः उपयोगिता की दृष्टि से कारक प्रकरण सिद्धान्तकौमुदी से दिया गया है। कारक-प्रकरण की सर्वांगीण और सुबोध व्याख्या प्रस्तुत की गई है। प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में कारक प्रकरण सिद्धान्तकौमुदी से ही निर्धारित किया गया है।
सम्पूर्ण भारत में ‘संस्कृत-व्याकरण’ का प्रचार इसकी उपादेयता का परिचायक है। प्रस्तुत संस्करण में कुछ आवश्यक परिवर्तन और परिवर्धन किए गए हैं। इस संस्करण के प्रथम भाग में सम्पूर्ण लघुसिद्धान्तकौमुदी दी गई है। तत्पश्चात् द्वितीय भाग में सिद्धान्तकौमुदी से कारक-प्रकरण, संक्षिप्त वैदिक-व्याकरण, संक्षिप्त प्राकृत-व्याकरण तथा पारिभाषिक शब्दकोश दिए गए हैं।
ग्रन्थ को अधिक उपयोगी बनाने के लिए इस संस्करण में सभी सूत्रों की वृत्ति और लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार पूरा पाठ भी जोड़ दिया गया है। इससे सम्पूर्ण लघुसिद्धान्तकौमुदी, विस्तृत व्याख्या और टिप्पणी-सहित विद्यार्थियों को उपलब्ध हो सकेगी। आशा है पूर्ववत् यह संस्करण संस्कृत-प्रेमियों और विद्यार्थियों में आदर प्राप्त करेगा।
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