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Sant Mahatmao ke Durlabh Prasang Vol. 1 (संत महात्माओ के दुर्लभ प्रसंग भाग 1)

90.00

Author S.N. Khandelwal
Publisher Vishwavidyalaya Prakashan
Language Hindi
Edition 2nd edition, 2019
ISBN 978-817949881-8
Pages 162
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code VVP0817
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Description

संत महात्माओ के दुर्लभ प्रसंग भाग 1 (Sant Mahatmao ke Durlabh Prasang Vol. 1)  संसार के भीषण जीवन संग्राम में पग-पग पर निराशा सताती है। जीवन की स्तूपीकृत विफलता के चलते व्यक्ति को मार्ग नहीं सूझता। ऐसे क्षणों में सन्तों को श्रेष्ठतर आशाप्रद वाणी से बढ़कर और मधुरतम आश्वासन क्या हो सकता है ? तब वह निश्चेष्ट यात्री अपनी जीवन यात्रा के मार्ग पर आशा का आलोक उ‌द्भासित हो जाने के कारण दुःस्तर कंटकाकीर्ण जीवन पथ पर निर्भय हो अग्रसर होने लगता है। तत्वतः देखिये तो जगत् शोक-ताप निमग्न है। सन्त को तो इसके कण-कण में दुःख का दर्शन होता है। वह देखता है कि एक ही दुःख स्रोत भीतर-बाहर सर्वत्र प्रवाहित है। इस जगन्मय दुःख को देखकर जिसके प्राण करुणा विगलित होकर रो उठें, वही यथार्थ सन्त है ‘पर दुःख द्रवहिं सन्त सुपुनीता।’ यही सन्त की निर्विवाद परिभाषा मानी गयी है।

यह सन्त प्रसंग अनन्त है। इसे पूर्ण रूप से कोई भी कह नहीं सकता। यहाँ यथामति यत्किंचित प्रकाश प्रक्षेपण का प्रयारा मात्र कर सका हूँ। द्वितीयतः यह कहना है कि सन्तों का जीवनवृत्त अलौकिक तथा सामान्यतः अविश्वसनीय प्रतीत होने वाली घटनाओं से भरा है। तार्किक तथा भौतिक मान्यतायुक्त बुद्धिवालों के लिये यह कपोल कल्पना तथा उपहास का विषय है। उनके लिये मुझे कुछ नहीं कहना है, क्योंकि संविधान ने विचार स्वातंत्र्य का अधिकार सबको दिया है। तथापि जो सत्पथ पर चलने वाले श्नद्धाभक्ति समन्वित पवित्रात्मा हैं, उनके लिये यह सब अनहोनी नहीं है। यथार्थ है। अतः अविश्वासी अविश्वास करें, उपहास करें, विश्वासी इससे अनुप्राणित रहें, दोनों मेरे लिए / स्वागतार्ह हैं। वन्दनीय हैं। ‘जाकी रही भावना जैसी !’

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