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Sarayuparin Brahmano Ka Itihas (सरयूपारीण ब्राह्मणो का इतिहास)

70.00

Author Pt. Dwarkaprashad Mishra Shastri
Publisher Chowkhamba Sanskrit Series Office
Language Hindi
Edition 2nd, Edition
ISBN 978-81-7080-2261
Pages 98
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0419
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Description

सरयूपारीण ब्राह्मणो का इतिहास (Sarayuparin Brahmano Ka Itihas) मेरे पूज्य पिता जी किशोर वय में प्रयाग के दारागंज मुहल्ला में रह कर संस्कृत पढ़ते थे। वहीं पर सरयूपार से आ कर पं० ठाकुरप्रसाद मणि त्रिपाठी वैद्य स्थायी रूप से बस गये। उनसे मेरे पिता जी का परिचय हुआ। वैद्य जी ने ‘सरवरिया विवरण’ नामक पुस्तक लिख कर छपवाई। उन्होंने उस पुस्तक की एक प्रति मेरे पिता जी को पढ़ने को निःशुल्क दी। उसको पढ़ कर पिता जी सरयूपारीण ब्राह्मणों के वंशों और उनके गोत्रों के ज्ञाता हो गये। वह पुस्तक अब भी मेरे पास जीर्ण रूप में सुरक्षित है।
पिता जी से प्रायः लोग ब्राह्मणों की सामाजिक प्रतिष्ठा और गोत्रों के विषय में पूछा करते थे। उनको बताने और सुनने से मुझको भी प्रेरणा मिली। शिक्षा-दीक्षा के बाद मुझको दो बड़े पुस्तकालयों में अधिकारी के रूप में सेवा का अवसर मिला। तब मैंने सरयूपारीण ब्राह्मणों के विषय से सम्बन्धित पुस्तकों को पढ़ना प्रारम्भ किया। इन पुस्तकों से नोट ले कर के लिखित मैटर की एक फाइल बनाई। सम्पूर्ण मैटर को अध्याय क्रम से व्यवस्थित किया। उसको प्रकाशित करने के लिये दो तीन प्रकाशकों से बात की। उन्होंने बहुत कम मूल्य दे कर कापीराइट लेने की बात की। मैं सहमत नहीं था। पिता जी ने भी सम्पूर्ण मैटर को कापीराइट देने से मना कर दिया। इस प्रकार गोत्रावली की वह एकत्र लिखित सामग्री फाइल में पड़ी रही। मैं अन्य विषयों की पुस्तकों को लिखने में लग गया। दर्जनों पुस्तकें लिखी और प्रकाशित भी हुई।
पिता जी के देहान्त के बाद मैं सेवा निवृत्त हो कर घर में रहने लगा। मेरी पत्नी प्रयाग के त्रिवेणी क्षेत्र में माघ मास में कल्पवास करने लगीं। हरिद्वार के स्वामी जगदीश्वरानन्द जी के आश्रम में अपनी पत्नी के साथ मैं भी कल्पवास में रहने लगा। वहाँ त्रिवेणी क्षेत्र में पुस्तक-विक्रेताओं से मैंने सरयूपारीण गोत्रावली माँगी तो कहीं नहीं मिली। एक दुकान पर मिली तो वह अधूरी और त्रुटिपूर्ण थी। पुस्तक विक्रेताओं ने बताया कि उसकी माँग तो है परन्तु लोग कम मूल्य की पुस्तक चाहते हैं। यदि ऐसी कोई ‘सरयूपारीण ब्राह्मण गोत्रावली’ हो तो बिक सकती है।
पुस्तक-विक्रेताओं से इतना संकेत मिलने पर मैंने ‘गोत्रावली’ की फाइल में से मैटर ले कर एक संक्षिप्त गोत्रावली ‘वंश’ क्रम से तैयार की और उसको गोत्र क्रम से व्यवस्थित किया। उसको मैंने स्वयं प्रकाशित किया।

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