Sarvato Bhadra Chakram (सर्वतोभद्रचक्रम्)
₹90.00
Author | Brahmanand Tripathi |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2018 |
ISBN | - |
Pages | 96 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0833 |
Other | Dispatched in 3 days |
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सर्वतोभद्रचक्रम् (Sarvato Bhadra Chakram) प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम ‘सर्वतोभद्रचक्र’ है। केवल ‘सर्वतोभद्र’ शब्द साहित्य में अनेक अर्थों का वाचक है, उन अर्थों से यहाँ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है। ग्रन्थ के भीतर इसका परिचायक एक नाम और है- ‘एकाशीतिपद चक्र’ इसका यह गुणकृत नाम है। इसका अर्थ है- ८१ कोष्ठकों वाला चक्र। इसका तीसरा नाम है- ‘त्रैलोक्यदीपक’ यह इस ग्रन्थ का भावगर्भ नाम है, जो इसके महत्त्व को प्रकट करता है। इसका अर्थ है, जो अपने प्रकाश से सभी पदार्थों को प्रकाशित कर देता है, फिर वह जिस स्थिति में हो आप उसे ‘त्रैलोक्यदीपक’ के ज्ञान प्रकाश से देखें । वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का प्रभाव सार्वकालिक, सार्वदैशिक तथा सार्वभौमिक होता है, आवश्यकता है इसे जानने वाले की, फिर वह अपनी योग्यता से जनता को समझा लेता है।
यह ग्रन्थ ‘ब्रह्मयामलतन्त्र’ से संगृहीत है और ‘बृहदर्घमार्तण्ड’ से इसके विषय को पल्लवित किया गया है। आज प्रायः ये दोनों ही ग्रन्थ दुर्लभ हैं। ‘बृहदर्घमार्तण्ड’ का ही एक भाग ‘अर्धमार्तण्ड’ है, जिसका प्रकाशन ‘मोतीलाल- बनारसीदास’, बंगलो रोड, जवाहर नगर, दिल्ली ने किया है। यह मूल रहित केवल हिन्दी टीका मात्र मिलता है। पाठक इसका अनुशीलन करें, ग्रन्थ के विषय को समझाने में निश्चित ही यह सहायक है। आजकल तो ‘सर्वतोभद्रचक्र’ नामक यह ग्रन्थ भी दुर्लभ हो चला था। इस ग्रन्थ का विवेच्य विषय लोकोपकारक है। व्यापारिक वर्ग के लिये तो यह वास्तव में स्वर्णिम प्रभात की भाँति सुखद है, कब किस देश में कौन-सी वस्तु कितने दिन तक सस्ती अथवा महँगी रहेगी, इस विषय का सम्यक्- ज्ञान प्रस्तुत चक्र के वेध से किया जा सकता है। इसे समझाने का हमने पूर्ण प्रयास किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ स्वर, व्यञ्जन, नक्षत्र, राशि, नन्दा, भद्रा आदि पाँच तिथियों एवं सात वारों के समावेश से बनाया गया। यह ‘सर्वतोभद्रचक्र’ ग्रहों के वेध द्वारा शुभाशुभ फलों को बतलाता है। इसी का विचार सम्पूर्ण ग्रन्थ में किया गया है। इस चक्र में व्याकरण शास्त्र के नियम विरुद्ध दीर्घ ‘लू’ स्वर का प्रयोग किया गया है, तन्त्रशास्त्र में व्याकरण के नियमों का ठीक-ठीक पालन नहीं देखा जाता । ब्रह्मयामल एक तन्त्र प्रधान ग्रन्थ है।
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