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Shisupalvadh Mahakavyam 1-4 Sarg (शिशुपालवध महाकाव्यम् 1-4 सर्गात्मक)

100.00

Author Dr. Acharya Dhurandhar Pandey
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2nd edition, 2010
ISBN 81-87415-30-4
Pages 274
Cover Paper Back
Size 12 x 4 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0107
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Description

शिशुपालवध महाकाव्यम् (Shisupalvadh Mahakavyam) महाकवि माघ द्वारा रचित इस महाकाव्य में महाकाव्य के सभी लक्षण साधु घटित होते हैं। शिशुपालवध महाकाव्य की कथा (वर्ण्यवस्तु) ऐतिहासिक है जो कि महाभारत पर आधारित है। इसमें २० सर्ग हैं इसके नायक स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण है। ये धीरोदात्त नायक के गुणों से सुशोभित हैं। महाकवि माघ के शिशुपालवध में अङ्गीरस वीर है और श्रृङ्गार, हास्य आदि रस अङ्ग हैं, किन्तु वीररसप्रधानकाव्य में भी कवि की सहृदयता सरसता के उद्रेक के कारण अङ्गस्वरूप श्रृङ्गाररस अङ्गी के तुल्य प्रधान हो गया है प्रत्येक सर्ग में प्रथम एक ही छन्द का प्रयोग किया गया है और सर्ग के अन्त में छन्द का परिवर्तन हुआ है। चतुर्थ सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है। प्रत्येक सर्ग के अन्त में अग्रिम सर्ग की कथा की सूचना दी गई है। आरम्भ में वस्तुनिर्देशात्मक मङ्गलाचरण किया गया है शिशुपाल का वध ही इस महाकाव्य का फल है और उसका बीज है- भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा देवर्षि नारद रूप वस्तु; जिसका निर्देश प्रारम्भिक पद्य में किया गया है।

यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा देवर्षिनारद-दर्शन रूप वस्तु का श्रीशब्दपूर्वक निर्देश होने से ही वस्तु निर्देशात्मक मङ्गलाचरण है। इसमें युद्धयात्रा, द्वारकापुरी, समुद्र, रैवतपर्वत, सेनानिवेश, छः ऋतु, पुष्पावचय, जलक्रीड़ा, वनविहार, सायं, चन्द्रोदय, मद्यपान, प्रभात, प्रयाग तथा यमुना, सेनाप्रयाण, यज्ञ, सभा, द्वन्द्वयुद्ध, आदि का यथास्थान साङ्गोपाङ्ग वर्णन है। इस महाकाव्य का शिशुपाल के वध रूप फल के आधार पर (या वर्णनीय घटना के आधार पर) ‘शिशुपालवध’ और कवि के नाम पर ‘माघ’ नाम प्रसिद्ध हुआ ही है। इस महाकाव्य के किसी भी सर्ग में ५०० से कम तथा १५० से अधिक पद्य नहीं हैं। इसकी भाषाशैली अलङ्कार शास्त्रोक्त महाकाव्य की शैली है। अलङ्कार की योजना के साथ-साथ चित्रबन्ध आदि के नियमों का भी यहाँ पूर्णतया पालन किया गया है। प्रत्येक वर्णन, प्रत्येक भाव साधारण शब्दों में न होकर अलङ्कारों से विभूषित भाषा में प्रकट किया गया है। समासों की बहुलता, विकटवर्णों की ‘उदारता’ गाढ़बन्धों की मनोहरता हमारे मानस-पटल पर आकर नाचने लगती है। इस ओजोगुणमयी कविता का माघ काव्य में सर्वोत्कृष्ट विकास है।

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