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Shree Kalash Prathistha (श्री कलश प्रतिष्ठा)
₹35.00
Author | Shri Gayaa Prashad Panday |
Publisher | Shri Durga Pustak Bhandar Pvt. Ltd. |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 56 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SDPB0001 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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श्री कलश प्रतिष्ठा (Shree Kalash Prathistha) हमारे सनातन धर्म में पंचदेव (पृथिवी, गौरि, गणेश, वरुण और नवग्रह) पूजन की प्राचीन परिपाटी चली आ रही है। प्रत्येक देवी-देवता के पूजन के पहले, संस्कार के पहले, २ तीर्थयात्रा के पहले और बाद में समापन के लिए, तिलक और द्वारपूजा आदि सभी में इस परिपाटी का अनुसरण किया जाता है। पूजन का मंत्र, वैदिक अथवा पौराणिक-कोई भी हो पढ़ा जा सकता है। गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य- इन पाँच वस्तुओं से जो पूजन किया जाता है, वह पंचोपचार कहा जाता है। षोडशोपचार पूजन १६ प्रकार से की जाती है- (१) स्थापन-आवाहन, (२) आसन, (३) पाद्य, (४) अर्घ्य, (५) आचमन, (६) स्नान, (७) वस्त्र, (८) यज्ञोपवीत, (९) गन्ध, (१०) अक्षत, (११) पुष्प, (१२) धूप, (१३) दीप, (१४) नैवेद्य, (१५) ताम्बूल-पूगीफल, (१६) दक्षिणा।
पूजा-स्थल को गौ के गोबर से या गंगा जी की मिट्टी से लीपकर या गंगाजल छिड़क कर स्वच्छ और पवित्र कर लेना चाहिए। कार्य-कर्त्ता का मुख पूर्व की ओर रहना चाहिए। ऐसा इंगित कर उसके सामने आटा, हल्दी, रोली आदि से सुन्दर चौक पूर दे। थोड़ा आगे गौरी-गणेश को रक्खे; उससे थोड़ा और आगे अष्टदल कमल पर कलश स्थापित करे उसमें गंगाजल, पान, सोपारी, मृत्तिका, द्रव्यादि छोड़कर कलावा बाँधे और आम्रपल्लव, कुश, पान, दूब आदि ऊपर रखकर जव या चावल से भरा हुआ सकोरा (प्याला या कटोरी आदि) रक्खे। फिर देशाचार से नारियल या कोई फल अथवा घी का दीपक रक्खे। उत्तर भाग की ओर लकड़ी के पीढ़े पर नौ ग्रह बनावे। अधि-प्रत्यधि देवों के लिए और मातृकाओं के लिए (षोडश मातृकायें) एक-एक दोना या प्याला ही रक्खे तो अच्छा है; वैसे इनका पूजन कलश पर ही हो जाता है। यदि किसी प्रधान देवता का पूजन करना है तो कलश के पीछे पूर्व में एक चौकी पर केले का पत्ता आदि बाँधकर सजा दे। उसके ऊपर आसन का वस्त्र बिछाकर प्रधान-देव को विराजमान कराये।
पूजन प्रारम्भ करने के पहले सब सामग्री एकत्र कर पूजा स्थल पर ही रख ले। देवों को रोली चन्दनादि अनामिका उंगली से लगावे। आचार्य, यजमान, या कार्य-कर्ता (मनुष्य) को अँगूठे से चन्दन-रोली आदि लगावे। देवी-देवताओं को अक्षत-पुष्पादि फेंक कर न चढ़ावे बल्कि श्रद्धाभक्ति से अर्पण करे, क्योंकि कहा गया है कि-यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी। अतः पूजा पाठ में भक्ति का भाव अनिवार्य है।
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