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Shri Bhagawat Sudha Sagar (श्रीभागवत सुधासागर शुकसागर)

450.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 29th edition
ISBN -
Pages 1182
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0176
Other Code - 1930

 

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Description

श्रीभागवत सुधासागर शुकसाग (Shri Bhagawat Sudha Sagar) श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मयका मुकुटमणि है। वैष्णवोंका तो यह सर्वस्व ही है। भारतवर्षमें जितने भी वैष्णव सम्प्रदाय प्रचलित हैं, उन सभीमें श्रीमद्भागवतका वेदोंके समान आदर है। कई आचायाँन तो प्रस्थानत्रयीके अन्तर्गत उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रोंके साथ इसीको तीसरा प्रस्थान माना है। इसे वेद-महोदधिका अमृत कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी ‘वेदोपनिषदां साराज्ञ्जाता भागवती कथा।’ बल्कि पद्मपुराणान्तर्गत भागवत माहात्म्यमें स्वयं सनकादि परमर्षियोंने प्रणव, गायत्री मन्त्र, वेदत्रयी, श्रीमद्भागवत और भगवान् पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण- इनका तत्त्वतः अभेद बतलाया है। इसे भगवान् श्रीकृष्णका साक्षात् वाङ्मय-स्वरूप माना गया है। साक्षात् भगवान्‌के कलावतार श्रीवेदव्यासजी जैसे अद्वितीय महापुरुषको जिसकी रचनासे ही शान्ति मिली, उस श्रीमद्भागवतकी महिमा कहाँतक कही जाय। इसमें प्रेम, भक्ति, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य सभी कूट-कूटकर भरे हुए हैं। इसका एक-एक श्लोक मन्त्रवत् माना जाता है। इसीसे इसका धर्मप्राण जनतामें इतना आदर है।

गीताप्रेससे प्रथम बार संवत् १९९७ में इस ग्रन्थरत्नका सरल भाषानुवाद-सहित, पाठभेदकी टिप्पणियोंसे युक्त संस्करण दो खण्डोंमें प्रकाशित किया गया था, जिसे भागवत प्रेमी समाजने बहुत पसंद किया था। अनुवाद हमारे प्रिय बन्धु श्रीमुनिलालजी (बादमें श्रद्धेय स्वामी सनातनदेवजी) ने किया था। वह संस्करण बहुत शीघ्र ही समाप्त हो गया और उसे दुबारा छापनेकी माँग कई वर्षोंसे की जा रही है; परंतु इच्छा रहते हुए भी उसे कई कारणोंसे हम लोग दुबारा नहीं छाप सके। इसी बीचमें ‘कल्याण’ का ‘भागवतांक’ निकला, उसमें अनुवादशैली कुछ बदल दी गयी। इस अनुवादमें प्रधान हाथ हमारे ही पं श्रीशान्तनुबिहारीजी द्विवेदी (बादमें श्रद्धेय स्वामी श्रीअखण्डानन्दजी सरस्वती महाराज) का था। साथ ही श्रीमुनिलालजी तथा पं श्रीरामनारायणदत्तजी शास्वीका भी सहयोग रहा। अनुवादकी परिवर्तित शैली जनताको अधिक प्रिय लगी। अतएव भागवतका सटीक संस्करण दुबारा छापनेके लिये इसी शैलीके अनुसार उसके संशोधनका कार्य प्रारम्भ किया गया।

इसी बीचमें हमारे सौभाग्यवश स्वामी श्रीअखण्डानन्दजी महाराज गोरखपुर पधारे और उन्होंने हमारी प्रार्थनापर इस कार्यको आद्योपान्त करना सहर्ष स्वीकार किया। लगातार कई महीनोंके अथक परिश्रमके बाद भगवान्‌की कृपासे यह कार्य सम्पन्न हुआ और जिसकी ओर जनताकी आँखें कई वर्षोंसे लगी हुयी थीं, वह श्रीमद्भागवतका सटीक संस्करण हमलोग दुबारा छापनेमें समर्थ हुए। इसका सम्पूर्ण श्रेय श्रीमद्भागवतके प्रतिपाद्य भगवान् श्रीनन्दनन्दनको ही है। हमलोग भी इस कार्यमें निमित्त बनकर धन्यातिधन्य हो गये। जो लोग संस्कृतसे सर्वथा अनभिज्ञ हैं, अतएव जिनकी केवल अनुवादमात्रको पढ़नेकी रुचि है, ऐसे लोगोंकी सुविधाके लिये यह केवल भाषानुवाद ‘श्रीभागवत सुधासागर’ के नामसे अलग छापकर पाठकोंके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। यह अनुवाद श्रीमद्भागवतके सटीक संस्करणसे ही लिया गया है। उक्त दोनों संन्यासी महात्माओंके अतिरिक्त अनुवादके तैयार अथवा शुद्ध करनेमें तथा प्रूफ आदि देखनेमें जिन-जिन महानुभावोंने हाथ बंटाया है, हम उनका अलग-अलग नामोल्लेख न करके सभीके प्रति कृतज्ञता प्रकाशित करते हैं। वे सभी अपने हैं, इस नाते कृतज्ञताप्रकाश भी केवल शिष्टाचारकी रक्षाके लिये ही है। प्रस्तुत अनुवादमें मूल श्लोकोंके अन्तर्गत प्रत्येक शब्दके भावकी रक्षा करते हुए छोटे-छोटे वाक्योंमें उनकी व्याख्या की गयी है।

अतएव इसे अनुवाद न कहकर ‘सरल संक्षिप्त व्याख्या’ कहना अधिक उपयुक्त होगा। स्थान स्थानपर, विशेष करके दशम स्कन्धमें कई जगह श्रीभगवान्‌की मधुर लीलाओंके रसास्वादनके लिये और लीला रहस्यको समझनेके लिये नयी-नयी टिप्पणियाँ भी दी गयी हैं, जिससे ग्रन्थकी उपादेयता और सुन्दरता विशेष बढ़ गयी है और साथ ही आकार भी कुछ बढ़ गया है। ये इस नवीन संस्करणकी कुछ विशेषताएँ हैं। अनुवाद तथा छपाईमें यथासम्भव बहुत अधिक सावधानी रखनेपर भी बुद्धिभ्रम अथवा दृष्टिदोषसे भूलें अवश्य रही होंगी, इसके लिये विज्ञ पाठक हमें क्षमा करेंगे। यदि कोई सञ्जन हमारी भूल हमें बतानेकी कृपा करेंगे तो हम उनके विशेष कृतज्ञ होंगे और अगले संस्करणमें उन भूलोंको सुधारनेकी चेष्टा करेंगे।

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