Shrimad Bhagvad Gita (श्रीमद्भगवतगीता)
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Author | - |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2015 |
ISBN | - |
Pages | 1116 |
Cover | Hard Cover |
Size | 17 x 5 x 24 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0062 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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श्रीमद्भगवतगीता (Shrimad Bhagvad Gita) आज हम बड़े आनंदसे समस्त सज्जर्नोको विदित करते हैं कि, चिदानन्दमय ब्रह्मकी अनादिसिद्धशक्तिद्वारा प्रपंचित अनंतकोटिब्रह्माण्डात्मक संसारमें अनंत-जन्मार्जित सुकतदुष्कृतकर्मोंसे उच्चनीच गतिको प्राप्त होनेवाले असंख्पात जीवोंको इस भवपाशसे मुक्तहोकर सच्चिदानन्द परब्रह्ममय होना यही परम उत्तम कर्तव्य है। अब यह विचार करना चाहिये कि, मोक्षरूप पदार्थ सबकोही सहजसाध्य नहीं है। किंतु प्रबलतरसंस्कारसाध्य है। वे संस्कार स्वस्त्रवर्णाश्रमोचित धर्मानुष्ठानद्वारा शमदमादिसाधन संपत्तिप्राप्तिपर्यंत उपचित होकर चित्तकी शुद्धि करते हैं। चित्तशुद्धि होनेके उपरान्त सत्रुरुका उपाश्रयण करके उनके मुखारविन्दसे उपदिष्ट हुए उपनिपदादि वाक्योंके अर्थतात्पर्यका विचार करनेसे तत्त्वत्पदार्थबोध उत्पन्न होता है. तिसके अनन्तर स्वकीय विचारैकगम्य “अहं ब्रह्मास्मि” इस वाक्यार्थकी उपस्थिति जब दृढतर होती है तब पूर्णत्रामयत्व प्राप्त होता है बही मोक्षोपाय है। अब मोक्षसिद्धिके अर्थ उपनिषदादि वेदान्तवाक्योंका अर्थबोध होना आवश्यक है। सब उपनिपट्रन्थ मिलकर अतिविस्तीर्ण वेदान्तशास्त्र है। सबका विचार साधारण प्रज्ञपुरुषों को होना अतिदुर्घट है. इस अभिप्रायसे संपूर्ण उपनिषदोंका सार सार संग्रहकरके श्रीभगवान् श्रीकृष्णजीने अर्जुनको उपदेश दिया है।
वह भगवदुक्ती “श्रीमद्भगवद्गीता” इस नामसे सुप्रसिद्ध है। यह भगवङ्गीता श्रीमान् वेदव्यासजीने श्रीकृष्णार्जुनसंवादरूपसे श्रीमन्महाभारत के भीष्मपर्वमें निवेशित करी है. इस भगवङ्गीतार्मे “तत् त्वम् अति” इन तीन पदोंका अर्थनिर्णयके अर्थ तीन पर्क (छः-छः अध्यायोंका एक एक भाग ऐसे मिलकर अठारह अध्याय) हैं। इस शास्त्रका मुख्य उद्देश संपूर्ण प्राणिमात्र को स्वस्ववर्णाश्रमोक्त धर्माचरणपूर्वक परमात्मवत्त्व ज्ञानसे मोक्षसंपादन कराना यही है। ऐसा यह परमोपयोगी भगवद्रीताशास्त्र सर्व सज्जनोंसे संमानित इस भूमंडलमें सुप्रसिद्धही है। इस भगवङ्गीताशास्रके ऊपर अद्यावधि बहुत आचार्योंने भाष्यरचनाकरके उपनिषदर्थोंका आयंतरिक सार अंरा प्रकट किया है। जिसके द्वारा अनेक सज्जनोंको परमार्थका लाभ हुआ है. ऐसेही अनेकानेक विद्वज्जनोंने सविस्तर टीकार्ये निर्माण करके भाष्योकार्थका अनुसरण किया है. परंतु कालमाहात्म्यसे संस्कृतवियाके अध्ययन अध्यापनके प्रचारका ह्रास होनेसे सर्वसाधारण लोगोंको यथार्थ सारअर्थका बोध होना दुर्लभ हुवा। यह विचार करके परममान्य श्रीमन्निखिल गुणगणालंकृतचिद्दद्रणशिरोवर्तस श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य पूज्यपादश्रीस्वामि चिद्धनानंद गिरिजी महोदयने सर्व सांसारिक लोगोंके उपकारार्थ श्रीमच्छांकरभाष्यके पदपदार्थानुकूल यह “गूढार्थदीपिका” नामक भाषाटीका निर्माणकरके सब सांसारिक लोगोंके ऊपर महान् अनुग्रह किया है। अब हम बड़े आनंदसे उक्त महोदयको जितने धन्यवाद दें, उतनेही थोडे हैं। इन महात्मापुरुषने इस भूमंडलमें अवतार लेकरके शास्त्रका पुनरुज्जीवन किया है। प्रथमतः इन्होंने “न्यायप्रकाश” ग्रंथ निर्माण करके न्यायशास्त्रके प्रेमियोंको न्यायशास्त्रोक्त प्रमाण प्रमेय ऐसे सुबोध कर दियेहैं कि, केवलभाषाजाननेवाले समस्त जिज्ञासुजन अनायास्सेही न्यायशास्त्र में पारंगत होसकते हैं और “आत्मपुराण” ग्रंथका भाषांतर करके उपनिपर्दोका संपूर्ण अर्थ साधारण लोर्कोको करतलामलकवत् सुलभ करदिया है। और यह गीता “गूढार्थदीपिका” भाषाटीका निर्माणकरके समस्त शास्त्रसिद्धान्तको सर्व लोकोंके अर्थ सुलभ करदिया है और “तत्त्वानुसंधान” नामक ग्रंथ निर्माण करके येदान्तसिद्धान्तको सुस्पष्ट करदिया है।
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