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Shukla Yajurvediya Rudra Ashtadhyayi (शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी)

68.00

Author Veni Ram Sharma Gaud
Publisher Vyass Prakasan Varanasi
Language Sanskrit
Edition -
ISBN -
Pages 132
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0158
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Description

शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी (Shukla Yajurvediya Rudra Ashtadhyayi) शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी, भगवान शिव का सबसे प्रशंसित और प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह आध्यात्मिक ज्ञान की सबसे पुरानी अभिव्यक्तियों में से एक है। इसमें कुल दस अध्याय हैं, लेकिन आठ तक को ही मुख्य माना जाता है रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करते समय पांचवां और आठवां अध्याय “नमक चमक पाठ” कहलाता है। नमक चमक पाठ के 11 आवर्तन पूरे होने पर इसे “एकादशिनी रुद्री” पाठ कहा जाता है। एकादशिनी रुद्री पाठ के 11 आवर्तन पूरे होने पर इसे “लघु रुद्री” पाठ कहा जाता है। रुद्राभिषेक मंत्र कोई एक मंत्र नहीं बल्कि मंत्रों का समूह है, जिसे ‘शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी’ के रूप में भी जाना जाता है। ऋषियों ने शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में दिया है। ‘शुक्लयजुर्वेदसंहिता’ का महत्त्वपूर्ण अंश यह ‘रुद्राष्टाध्यायी’ है। इसका उल्लेख उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों तथा मीमांसासूत्रों में सुलभ है। इसमें १० अध्यायों का संग्रह है। इसका प्रथम से अष्टम अध्याय तक मूल मन्त्र भाग है, अन्तिम दो अध्याय जगन्मंगल की भावना से शान्ति एवं ईश्वर-प्रार्थना स्वरूप संगृहीत हैं।

वैदिक वाङ्मय का ज्ञान उसके षडंगों (शिक्षा-कल्प-व्याकरण-निरुक्त-छन्द-ज्योतिष ) के ज्ञान से पूर्ण होता है। इसकी एक स्वतन्त्र परम्परा है, जिसका सम्पूर्ण भार द्विजातियों पर निर्भर है। वेदों के सस्वर पाठ को स्वाध्याय कहते हैं। इसका भी एक विशिष्ट महत्त्व है, परन्तु यह पद्धति एकाङ्गीण है। सर्वांगपूर्ण पाठ के लिए प्रत्येक मन्त्र के ऋषि, छन्द, देवता आदि का आचारण कर विनियोग करना और उसके साथ मन्त्र का अर्थज्ञान होना भी आवश्यक है। अर्थज्ञान के बिना किया हुआ स्वाध्याय भारस्वरूप होता है। धर्मशास्त्रों में रुद्राष्टाध्यायी के पाठ से सभी प्रकार के पापों का विनाश होने की चर्चा है। इसमें भी पुरुषसूक्त के जप-पाठ का विशेष महत्त्व है।

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