Shveta Shvatara Upnishad (श्वेताश्वतरोपनिषद्)
₹212.00
Author | Jagannath Shastri |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 3rd edition, 2021 |
ISBN | 978-81-217-0298-0 |
Pages | 282 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0438 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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श्वेताश्वतरोपनिषद् (Shveta Shvatara Upnishad) मानव के मन में निरन्तर ज्ञानपिपासा बनी रहती है। उसके मन में नाना प्रकार के प्रश्न उपस्थित होते हैं-‘मैं कौन हूँ? कहां से आया हूँ? मेरा जन्म कैसे हुआ है? मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है? और वह क्या होना चाहिए?’ इत्यादि। कुछ प्राणियों का लक्ष्य भोग होता है। वे यह सोचते हैं-
“यावञ्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः?॥”
इस प्रकार के जीव शरीर को ही अपना मानते हैं। दूसरे प्राणियों का लक्ष्य मोक्ष होता है। वे शरीर को महत्व नहीं देते। वे उसकी क्षणभंगुरता का अनुभव करते हैं और उससे परे किसी शाश्वतसत्ता की खोज में निकल पड़ते हैं। ऐसे ही मानव के मन में पूर्वोक्त प्रश्न उपस्थित होते हैं। इन प्रश्नों का समाधान हमें’ पुरुषार्थ’ तत्त्व को जानने से मिलता है। ‘पुरुष’ और ‘पुरुषार्थ’- पुरुष जिसकी कामना करता है अथवा पुरुष का जो प्रयोजन होता है उसे ‘पुरुषार्थ’ कहते हैं- ‘पुरुषेण अर्थ्यते इति पुरुषार्थः’ अथवा ‘पुरुषस्य अर्थः (प्रयोजनं) पुरुषार्थः।’
‘पुरुष’ किसे कहते हैं? इस प्रश्न का समाधान हमें तभी मिलेगा जब हम यह समझेंगे कि ‘हम’ अलग हैं और हमारा शरीर हमसे अलग है। जिस प्रकार हम जिस घर में निवास करते हैं, वह हमसे अलग होता है, उसी प्रकार हमारा शरीर हमसे अलग है। वह नौ दरवाजों वाला ‘पुर’ (नगर) है, जिसमें हम निवास करते हैं। वह और कोई नहीं हमारा शरीर ही है। उसके नौ दरवाजे हैं-दो आँखें, दो कान, दो नासापुट, एक मुख, एक उपस्थ (योनि अथवा लिङ्ग) और एक गुदा।
अर्थात् हम जीवात्मा उस शरीररूपी पुर (नगर) से भिन्न हैं, जिसकी हृदयरूपी गुफा में हम सुप्तावस्था में निवास करते हुए अपने स्वरूप को भूल जाते हैं और उसे अपने से अभिन्न मानते हैं। जब कि हम जीवात्मा परब्रह्म परमात्मा के अंश है, वही हमारा वास्तविक स्वरूप है, हम उससे अभिन्न हैं और यही है हमारी सुप्तावस्था। ‘विष्णुसहस्रनामस्तोत्र’ के अन्तर्गत भगवान् विष्णु के हजार नामों में अन्यतम नाम ‘पुरुष’ भी है।
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