Siddha Bhumi Gyan Ganj (सिद्धभूमि ज्ञानगंज सूर्य विज्ञान)
₹120.00
Author | Dr. Gopinath Kaviraj |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-81217-0200-3 |
Pages | 98 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0428 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सिद्धभूमि ज्ञान गंज (Siddha Bhumi Gyan Ganj) इस ग्रंथ का आलोच्य विषय है ज्ञानगंज तथा उससे आविष्कृत विज्ञान समूह की पर्यालोचना। जब ज्ञान का उत्कर्ष होता है, जब ज्ञान ज्ञानातीत भूमि की ओर आरोहण करने लगता है, तब वही विज्ञान है। इसके पूर्व अर्थात् ज्ञानातीत भूमि की ओर आरोहण के पूर्व इतः स्ततः बिखरे ज्ञान का केन्द्रीयकरण आवश्यक है। जहाँ समस्त ज्ञान का केन्द्रीयकरण होता है, उसे हृदय कहते हैं। यह हृदय भौतिक (Heart) नहीं है। यह हृदय है, जहाँ समस्त बोध केन्द्रित होता है। इस हृदय की सत्ता को मानव की स्थूल देह में खोजकर भी नहीं पाया जा सकता। भावपथ के पथिक जिस हृदय में भाव का साकार विग्रह साक्षात्कृत करते हैं, भक्तगण जिस हृदय में अष्टदल के प्रस्फुटन के पश्चात् उस पर आसीन परम प्रेमास्पद को पाकर परमाभक्ति से सराबोर हो जाते हैं और सिद्धयोगी जिस हृदय को प्राप्त करके आत्मतत्त्व में अपनी सत्ता का विसर्जन कर देते हैं, वह हृदय चिदाकाश रूप है। वह समस्य विश्वजगत् का का हृदय है। वहीं ईश्वर निवास करता है।
“ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशे ” इस गीतोक्त श्लोक में सर्वभूतानां बहुवचन है, परन्तु हृद्देशे एकवचन है। अर्थात् सर्वजीव असंख्य हैं, बहुवचन हैं, परन्तु उनका हृदय एक ही है। अतः भौतिक हृदय में, Heart में, ईश्वर का वास नहीं है। वैसे तो वह कण-कण में व्याप्त है। परन्तु कण-कण में व्याप्त होने पर भी उसका विभाजन नहीं है। यदि ईश्वर टुकड़े-टुकड़े विभाजित है, तब वह खण्ड रूप है। ईश्वर खण्डित हो ही नहीं सकता। भौतिक हृदय उसका निवास स्थान कैसे हो सकता है, क्योंकि यह Heart प्रत्येक जीव का पृथक् पृथक् है, खण्डरूप है, ईश्वर का मन्दिर खण्डित कैसे होगा? ईश्वर के समान उसका वासस्थान भी अखण्ड है, तभी गीता में हृदय का एकवचन प्रयोग है। वह हृदय अखण्डिता तथा एक है।
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